चौखी धानी: जयपुर में संस्कृति, कला और देहात की आत्मा को भी अपने साथ समेटे हुए है
आगरा की गलियों में जब सुबह की पहली किरण पड़ती है, तब हवा में एक अनोखी मिठास घुल जाती है। ये मिठास किसी फूल की नहीं, बल्कि उस मक्खन की होती है जो यहाँ की पहचान बन चुकी है। पुरानी चौक की दुकानों से लेकर नई मार्केट तक, हर जगह आपको ‘मक्खन’ का नाम सुनाई देगा — वो भी इतनी शान से जैसे किसी ख़ास रत्न की बात हो रही हो।
कहते हैं कि इस मक्खन की शुरुआत मुग़ल दौर में हुई थी। शाही बावर्ची इस मलाईदार मिठाई को बनाते थे ताकि राजा-बादशाहों की थाली में कुछ ऐसा हो जो दिल और ज़ुबान दोनों को खुश कर दे। ताज़े दूध से निकली मलाई, देसी घी और शुद्ध चीनी के मेल से तैयार ये मिठाई इतनी नाज़ुक होती है कि मुंह में जाते ही घुल जाती है।
आगरा का मक्खन सिर्फ़ स्वाद नहीं, एक अहसास है। दुकानदार इसे बड़े सलीके से चाँदी के वर्क में लपेटकर परोसते हैं, जैसे कोई अमूल्य तोहफ़ा दे रहे हों। सर्दियों के दिनों में तो इसकी मांग और भी बढ़ जाती है — लोग सुबह-सुबह गरमागरम मक्खन लेने के लिए लाइन लगाते हैं।
आज भी कई पुरानी दुकानें हैं जो पीढ़ियों से वही पारंपरिक तरीका अपनाकर मक्खन बनाती हैं। न मशीनों का इस्तेमाल, न कोई मिलावट — बस वही देसी अंदाज़, वही शुद्धता। हर चम्मच में इतिहास की एक मीठी झलक मिलती है।
आगरा जाने वाले सैलानी अक्सर ताजमहल देखने आते हैं, पर जो असली ‘ताज’ ज़ुबान पर रह जाता है, वो है यही मक्खन की मिठाई। अगर आप कभी आगरा जाएँ, तो इस मिठास को चखना न भूलें — क्योंकि ये सिर्फ़ मिठाई नहीं, आगरा की रूह का स्वाद है।
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