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नामीबिया: भारत के यात्रियों के लिए अफ्रीका का अनछुआ हीरा

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  नामीबिया अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक ऐसा देश है जहाँ प्रकृति अपने सबसे अनोखे रूप में दिखाई देती है। भारतीय यात्रा प्रेमियों के लिए यह अभी भी एक कम जाना हुआ गंतव्य है, लेकिन यहाँ का विशाल रेगिस्तान, रहस्यमयी तट, अविश्वसनीय वन्यजीवन और शांत वातावरण इसे “अगला बड़ा ट्रैवल डेस्टिनेशन” बना सकता है। नामीबिया उन लोगों के लिए परफेक्ट है जो भीड़ से दूर प्राकृतिक सौंदर्य और रोमांच दोनों का अनुभव करना चाहते हैं। Read Also: जारवा: अंडमान के रहस्यमयी आदिवासी जो आज भी मौजूद हैं नामीबिया का अनोखा प्राकृतिक सौंदर्य नामीबिया का नाम लेते ही सबसे पहले दुनिया के सबसे पुराने रेगिस्तान-नामीब रेगिस्तान की छवि सामने आती है। इसका सॉससव्लेई क्षेत्र लाल रंग की ऊँची रेत की टीलों के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ सूर्योदय के समय रेत सोने की तरह चमकती है। Dune 45 और Big Daddy जैसे टीले फोटोग्राफ़रों और साहसिक यात्रियों के लिए किसी सपने से कम नहीं। इसी तरह स्केलेटन कोस्ट का धुंध से ढका रहस्यमय तटीय क्षेत्र, टूटे जहाज़ों के अवशेष और समुद्र की लगातार गूंज अविस्मरणीय अनुभव देते हैं। नामीबिया की भौग...

पांडिचेरी, जिसे ‘फ्रेंच टाउन ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है

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इमारतों और कैफ़े में फ्रेंच संस्कृति की महक आज भी जीवंत है। पांडिचेरी का व्हाइट टाउन क्षेत्र इसकी पहचान है। यहाँ पीले रंग की फ्रेंच-शैली की इमारतें, फूलों से सजी खिड़कियाँ और साइकिल चलाते लोग आपको यूरोप के किसी कोने में होने का एहसास कराते हैं। र्यू रोमैन रोलां स्ट्रीट और र्यू सफ्रन जैसी गलियाँ फ़ोटोग्राफ़रों के लिए स्वर्ग हैं। यहाँ के कैफ़े में फ्रेंच क्रोइसां, बैगेट और भारतीय मसालों का अनोखा मेल देखने को मिलता है।    शाम को समुद्र तट के किनारे सैर करते समय जब सूरज क्षितिज में ढलता है, तो पूरा शहर सुनहरी आभा में नहाया हुआ लगता है। रॉक बीच, सूर्योदय देखने के लिए पांडिचेरी का सबसे लोकप्रिय स्थान। ऑरोविले: एक अनोखा अंतरराष्ट्रीय समुदाय जहाँ लोग धर्म और देश से परे मिलकर जीवन जीते हैं। श्री ऑरोबिंदो आश्रम: आत्मिक शांति और ध्यान का केंद्र।                                                          ...

कोटा की संस्कृति राजस्थानी परंपराओं और आधुनिकता का सुंदर मेल है

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  राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में स्थित कोटा शहर न केवल अपनी शैक्षणिक पहचान के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह चंबल नदी के किनारे बसा एक ऐतिहासिक और औद्योगिक केंद्र भी है। कोटा की पहचान आज देशभर में “कोचिंग सिटी” के रूप में होती है, जहाँ हर साल लाखों विद्यार्थी इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करने आते हैं। लेकिन कोटा केवल कोचिंग तक सीमित नहीं है। यहाँ की कोटा डोरिया साड़ियाँ, कोटा स्टोन, और थर्मल पावर स्टेशन भी इस शहर की आर्थिक रीढ़ हैं। शहर में गढ़ पैलेस, चंबल गार्डन, सेवन वंडर्स पार्क, और किशोर सागर तालाब जैसे पर्यटन स्थल इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाते हैं। कोटा की संस्कृति राजस्थानी परंपराओं और आधुनिकता का सुंदर मेल है। यहाँ के मेले, लोकनृत्य और खानपान जैसे कोटा कचौरी और गट्टे की सब्ज़ी पर्यटकों के मन को मोह लेते हैं। आज का कोटा, शिक्षा, रोजगार और पर्यटन — तीनों क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ता हुआ एक आधुनिक शहर बन चुका  है। READ ALSO : समय में थमा हुआ शहर चेत्तिनाड,जहाँ हवेलियाँ बोलती हैं

रोबोटिक सर्जरी: चिकित्सा जगत की नई क्रांति

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विज्ञान ने हमेशा मानव जीवन को आसान और सुरक्षित बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। चिकित्सा जगत में आज जो सबसे बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है, वह है रोबोटिक सर्जरी। यह तकनीक सर्जरी की दुनिया में एक नई उम्मीद, नई सटीकता और नई गति लेकर आई है।   रोबोटिक सर्जरी वह प्रक्रिया है जिसमें डॉक्टर एक विशेष मशीन या रोबोट की मदद से ऑपरेशन करते हैं। सर्जन खुद मरीज के शरीर पर सीधे हाथ नहीं रखते, बल्कि एक कंप्यूटर कंसोल के माध्यम से रोबोटिक उपकरणों को नियंत्रित करते हैं।  ये उपकरण सर्जन की हर हरकत को कई गुना अधिक सटीकता से दोहराते हैं। इससे ऑपरेशन के दौरान गलती की संभावना बेहद कम हो जाती है। इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि मरीज को बहुत कम दर्द और रक्तस्राव का सामना करना पड़ता है। ऑपरेशन के बाद घाव जल्दी भरते हैं और मरीज को अस्पताल में ज़्यादा समय तक रुकना नहीं पड़ता। यही कारण है कि रोबोटिक सर्जरी को आधुनिक चिकित्सा का भविष्य कहा जा रहा है।

सरदार पटेल – केबड़िया, गुजरात की अमर गाथा

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 भारत माता के अनगिनत वीर सपूतों में से एक नाम सदैव स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा — सरदार वल्लभभाई पटेल। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। सरदार पटेल केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेता और भारत की एकता के प्रतीक थे। उन्होंने स्वतंत्र भारत को संगठित करने का जो कार्य किया, वह इतिहास में अनुपम है। जब देश स्वतंत्र हुआ, तब भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी — सैकड़ों रियासतों का एकीकरण। सरदार पटेल ने अपनी बुद्धिमत्ता, कठोर परिश्रम और अद्भुत कूटनीति के बल पर उन सभी रियासतों को भारत माता की गोद में मिलाने का कार्य किया। उनके इस योगदान के कारण ही उन्हें “लौह पुरुष” कहा गया। उन्होंने देश को बताया कि एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। गुजरात की धरती, जहाँ उन्होंने जन्म लिया, आज भी उनके गौरव को गर्व से संजोए हुए है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित केवड़िया (अब एकता नगर ) में उनकी याद में स्थापित है “ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी ” — विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा। यह स्मारक न केवल एक मूर्ति है, बल्कि भारत की एकता, शक्ति और अटूट संकल्प का प्रतीक है। यहाँ आने व...

एक अनजान स्टेशन पर उतरी सुबह — एक यात्रा जिसने बहुत कुछ सिखाया

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रात की ट्रेन दिल्ली से शिमला की ओर जा रही थी। डिब्बे में नींद और खामोशी का अजीब-सा संगम था। मैंने खिड़की से झाँका — बाहर के तारों भरे आसमान के नीचे, रेल की पटरी ऐसे मुड़ रही थी जैसे कोई पुरानी कहानी धीरे-धीरे खुल रही हो। रात के करीब 3 बजे ट्रेन अचानक रुक गई। स्टेशन का नाम धुँध में छिपा था — “कुमारहट्टी” । न कोई अनाउंसमेंट, न भीड़। बस दो-तीन झपकती पीली लाइटें और ठंडी हवा में उड़ता कोहरा। मैं नीचे उतर आया, बिना किसी वजह के। बस एक अनजाने खिंचाव से। प्लेटफ़ॉर्म के एक कोने में एक चायवाला था — लकड़ी की जलती हुई आग पर केतली रखे हुए। उसने मुस्कुराकर कहा — “साहब, इतनी रात में उतर गए? यहाँ तो ज़्यादा कोई रुकता नहीं।” मैंने हँसते हुए कहा — “शायद रुकने का मन नहीं था, ठहरने का था।” उसने जो चाय दी, वो किसी पाँच-सितारा कॉफ़ी से कहीं ज़्यादा सच्ची थी। आसमान में कोहरे के बीच से धीरे-धीरे भोर का रंग उतरने लगा। पहाड़ों की आकृतियाँ धुंध से उभर रहीं थीं, और पटरियों के किनारे खिलते जंगली फूल जैसे किसी ने जानबूझकर वहाँ रख दिए हों। उस एक घंटे में मैंने महसूस किया — “कभी-कभी मंज़िल से ज़्यादा मायन...

भारत की काँच नगरी फ़िरोज़ाबाद: इतिहास, हुनर और परंपरा की कहानी

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उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित फ़िरोज़ाबाद अपनी चमकदार काँच की चूड़ियों और नाजुक शिल्पकला के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। आगरा से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह नगर, भारत की ‘काँच नगरी’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ की हर गली में आपको कारीगरों का हुनर, पारंपरिक भट्टियों की गर्मी और चूड़ियों की खनक सुनाई देती है। फ़िरोज़ाबाद का ऐतिहासिक आरंभ फ़िरोज़ाबाद का नाम सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 14वीं शताब्दी में इस क्षेत्र को विकसित किया। ऐतिहासिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि मुगल काल के दौरान यह शहर एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा। अकबर के शासनकाल में, आगरा के आसपास के क्षेत्रों में शिल्पकारों और व्यापारियों की बसावट को बढ़ावा दिया गया, और फ़िरोज़ाबाद उन्हीं में से एक था। यहाँ के कारीगरों ने सबसे पहले काँच गलाने की तकनीक अपनाई और स्थानीय बाजारों के लिए चूड़ियों का उत्पादन शुरू किया। धीरे-धीरे यह परंपरा एक बड़े उद्योग में बदल गई। मुगल काल और काँच उद्योग का विकास मुगलों के समय में फ़िरोज़ाबाद का काँच उद्योग अपने चरम पर था। इतिहास...

जहाँ तर्क और कल्पना मिले — वहाँ था अफलातून

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जब हम ज्ञान, तर्क और विचारों की बात करते हैं, तो इतिहास में कुछ नाम अमर हो जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है – अफलातून। आज हम उसके बारे में जानेंगे, न केवल एक विद्वान के रूप में, बल्कि एक सोच के रूप में, एक चेतना के रूप में। अफलातून प्राचीन यूनान का महान दार्शनिक था। वह सुकरात का शिष्य और अरस्तु का गुरु था। लेकिन केवल यह कहना पर्याप्त नहीं है। उसका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उसने मनुष्य के सोचने के तरीके को ही बदल दिया। उसने जीवन, समाज, राजनीति, न्याय और आत्मा जैसे विषयों पर गहराई से विचार किया। उसका मानना था कि इस दुनिया की हर चीज़ एक "आदर्श रूप" या "आदर्श विचार" के आधार पर बनी है। उसका यह सिद्धांत आज भी दर्शनशास्त्र के सबसे जटिल और गूढ़ विषयों में से एक माना जाता है। अफलातून का मानना था कि सच्चा ज्ञान केवल अनुभव से नहीं, बल्कि चिंतन और मनन से प्राप्त होता है। उसने एक कल्पना की – एक आदर्श राज्य की, जहाँ राजा एक दार्शनिक हो। उसके अनुसार, जब तक दार्शनिक राजा नहीं बनेंगे या राजा दार्शनिक नहीं होंगे, तब तक समाज में न्याय नहीं आ सकता। वह केवल किताबों में सीमित नहीं था, उसका विच...

राज्य: एक आवश्यक बुराई – हर्बर्ट स्पेंसर का दृष्टिकोण

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  राज्य एक आवश्यक बुराई है — यह विचार गहरे राजनीतिक और दार्शनिक विमर्श का हिस्सा रहा है। यह कथन प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) से जुड़ा है, जिन्होंने राज्य की भूमिका पर कई क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए। वे मानते थे कि राज्य का अस्तित्व इसलिए है क्योंकि मनुष्य स्वयं अपने नैतिक दायित्वों का पालन नहीं करता। अगर समाज में सभी व्यक्ति आत्म-नियंत्रण, न्याय और पारस्परिक सहयोग से कार्य करें, तो राज्य की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। हरबर्ट स्पेंसर जैसे चिंतकों के अनुसार, राज्य का निर्माण मानव समाज की कमजोरियों को संतुलित करने के लिए हुआ है। यह व्यवस्था समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी तो है, लेकिन यह हमेशा स्वतंत्रता पर नियंत्रण भी लगाता  सीलिए इसे "आवश्यक बुराई" कहा गया है — ऐसी बुराई जो न हो तो अराजकता फैले, और हो तो स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। ऐसे कई विचारक रहे हैं जिन्होंने राज्य की सीमाओं और उसकी अनिवार्यता को लेकर सवाल उठाए। थॉमस पेन (Thomas Paine), एक और विख्यात विचारक, ने भी कहा था  कि "राज्य एक जरूरी बुराई है," खासकर तब जब...

चित्रकूट — राम की तपोभूमि, जहाँ धरती भी बोलती है भक्ति की भाषा

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 चित्रकूट — यह नाम लेते ही मन में रामायण के पवित्र प्रसंग जीवंत हो उठते हैं। यह वही भूमि है जहाँ भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास के ग्यारह वर्ष बिताए थे। यहाँ की हर बयार में मर्यादा, प्रेम, त्याग और भक्ति की सुगंध घुली हुई है। ऐसा लगता है मानो इस धरती का हर कण “राम” का नाम जपता होचित्रकूट का उल्लेख वाल्मीकि रामायण और गोसाईं तुलसीदास जी की रामचरितमानस दोनों में मिलता है। जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या छोड़कर वनवास को निकले, तब ऋषि अत्रि और माता अनसूया के निवास स्थान — चित्रकूट — को उन्होंने अपनी तपोभूमि बनाया। यही वह स्थान है जहाँ भरत मिलाप का वह हृदयस्पर्शी दृश्य हुआ था — जब भरत ने सिंहासन स्वीकारने से इनकार कर श्रीराम के चरणों में राज्य समर्पित कर दिया। वह क्षण आज भी हर भक्त के हृदय में अमिट है चित्रकूट का हृदय है मंदाकिनी नदी। यह नदी केवल जलधारा नहीं, भक्ति की धारा है। संध्या के समय जब भक्तजन दीप प्रवाहित करते हैं, तो पूरा तट दिव्य प्रकाश से जगमगा उठता है। मानो धरती स्वयं दीपमालिका से राम-नाम का उत्सव मना रही हो। “मंदाकिनी की लहरों में, राम कथा की गूंज है। ...

मक्खन की मिठास: आगरा की मशहूर मिठाई की अनकही कहानी

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  आगरा की गलियों में जब सुबह की पहली किरण पड़ती है, तब हवा में एक अनोखी मिठास घुल जाती है। ये मिठास किसी फूल की नहीं, बल्कि उस मक्खन की होती है जो यहाँ की पहचान बन चुकी है। पुरानी चौक की दुकानों से लेकर नई मार्केट तक, हर जगह आपको ‘मक्खन’ का नाम सुनाई देगा — वो भी इतनी शान से जैसे किसी ख़ास रत्न की बात हो रही हो। कहते हैं कि इस मक्खन की शुरुआत मुग़ल दौर में हुई थी। शाही बावर्ची इस मलाईदार मिठाई को बनाते थे ताकि राजा-बादशाहों की थाली में कुछ ऐसा हो जो दिल और ज़ुबान दोनों को खुश कर दे। ताज़े दूध से निकली मलाई, देसी घी और शुद्ध चीनी के मेल से तैयार ये मिठाई इतनी नाज़ुक होती है कि मुंह में जाते ही घुल जाती है। आगरा का मक्खन सिर्फ़ स्वाद नहीं, एक अहसास है। दुकानदार इसे बड़े सलीके से चाँदी के वर्क में लपेटकर परोसते हैं, जैसे कोई अमूल्य तोहफ़ा दे रहे हों। सर्दियों के दिनों में तो इसकी मांग और भी बढ़ जाती है — लोग सुबह-सुबह गरमागरम मक्खन लेने के लिए लाइन लगाते हैं। आज भी कई पुरानी दुकानें हैं जो पीढ़ियों से वही पारंपरिक तरीका अपनाकर मक्खन बनाती हैं। न मशीनों का इस्तेमाल, न कोई मिलावट — ब...

फोटोग्राफर रघु राय: एक लेंस, हज़ार कहानियाँ

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रघु राय: भारतीय फोटोग्राफी का परिचय भारतीय फोटोग्राफी का नाम आते ही अगर किसी एक कलाकार का चेहरा याद आता है, तो वह हैं रघु राय। छह दशक से अधिक समय से रघु राय ने देश के सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय पहलुओं को अपनी तस्वीरों में सहेजा है। प्रारंभिक जीवन और फोटोग्राफी की शुरुआत जन्म और परिवार रघु राय का जन्म 1942 में झंग (अब पाकिस्तान में) हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार दिल्ली आ गया। करियर की शुरुआत शुरू में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन बड़े भाई एस. पॉल ने उन्हें फोटोग्राफी अपनाने के लिए प्रेरित किया। 1966 में रघु राय ने The Statesman अखबार में बतौर फोटोजर्नलिस्ट काम शुरू किया और यहीं से उनकी पहचान बनी। अंतरराष्ट्रीय पहचान और Magnum Photos 1971 में विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर हेनरी कार्टियर-ब्रेसॉं ने रघु राय के काम को देखकर उन्हें अंतरराष्ट्रीय एजेंसी Magnum Photos के लिए अनुशंसा की। यहीं से भारतीय फोटोग्राफी को वैश्विक पहचान मिली। प्रमुख कार्य और सामाजिक दस्तावेज़ बांग्लादेश युद्ध और इंदिरा गांधी की हत्या रघु राय की कैमरे की नज़र ने भारत के हर रंग को कैद किया, ...

शेखावाटी: हवेलियों की कहानी और व्यापारियों की विरासत

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शेखावाटी, राजस्थान का एक प्रसिद्ध क्षेत्र, अपनी भव्य हवेलियों और व्यापारिक परिवारों के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र न केवल कला और संस्कृति का केंद्र है, बल्कि कई ऐसे उद्योगपति और व्यापारिक घरानों की जन्मभूमि भी है जिन्होंने भारत और विदेश में अपनी सफलता का झंडा गाड़ा। Shekhawati के लोग मेहनती, दूरदर्शी और व्यापारिक कुशलता के लिए प्रसिद्ध हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र के कई परिवारों ने भारतीय उद्योग और व्यवसाय को नई दिशा दी। टाटा परिवार, बिड़ला परिवार, Azim Premji के पूर्वज और मित्तल, अमरचंद तथा लल्लूजी जैसे परिवारों ने वस्त्र, बैंकिंग, रियल एस्टेट और तकनीकी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन परिवारों की दूरदर्शिता, साहस और व्यापारिक दृष्टिकोण ने उन्हें भारत और विदेश में सफलता दिलाई। शेखावाटी की हवेलियाँ भी इसकी समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं। ये हवेलियाँ भव्य चित्रकला, भित्ति चित्र और जटिल लकड़ी की नक्काशी से सजी हैं। व्यापारिक परिवारों ने अपनी सफलता और कला प्रेम के प्रतीक के रूप में इन हवेलियों का निर्माण किया। आज ये हवेलियाँ “ओपन एयर आर्ट गैलरी” के

एक आवाज़ जो ब्रांड बन गई — पीयूष पांडे का आख़िरी सलाम

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  भारतीय विज्ञापन जगत का एक सितारा हमेशा के लिए खामोश हो गया।कुछ खास है जिंदगी में”, “Fevicol का जोड़”, “हर खुशी में रंग लाए” जैसे जुमले गढ़ने वाले पीयूष पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे। 24 अक्टूबर 2025 की सुबह, जब यह खबर आई कि 70 वर्ष की उम्र में यह दिग्गज हमें छोड़ गए, तो पूरे मीडिया और विज्ञापन जगत में सन्नाटा छा गया। राजस्थान के जयपुर में जन्मे पीयूष जी ने जीवन की शुरुआत क्रिकेट और चाय के कारोबार से की थी, लेकिन किस्मत ने उन्हें कहानी सुनाने की

भारत के छुपे खजाने: 5 अनदेखे पर्यटन स्थल जो आपको हैरान कर देंगे

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Read Also : ratnon ki jagmagme chhipa atmavishwas bigg b astrology    भारत के अनदेखे पर्यटन स्थल भारत में पर्यटन सिर्फ ताज महल या गोवा तक सीमित नहीं है। देश में कई ऐसे अनदेखे और सुंदर स्थल हैं, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। ये स्थल प्राकृतिक सौंदर्य, शांत वातावरण और अद्वितीय अनुभव के लिए बेहतरीन हैं। अगर आप भी कुछ नया और रोमांचक अनुभव करना चाहते हैं, तो इन जगहों को अपनी यात्रा सूची में जरूर शामिल करें। माजुली, असम माजुली दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप है और ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित है। यहाँ का शांत वातावरण, पारंपरिक संस्कृति और मठों का आकर्षण पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। माजुली में हर साल मास्टर शिल्प

सिल्वर स्क्रीन से संसद तक: भारतीय राजनीति में फिल्मी सितारों का चमकता सफ़र

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Read Also : bharat ke chhupe khazane 5 andeekhe paryatan sthal   भारतीय समाज में सिनेमा का प्रभाव बहुत गहरा है। फिल्मों के माध्यम से अभिनेता और अभिनेत्रियाँ लोगों के दिलों तक पहुँचते हैं। जब यही चेहरे राजनीति की दुनिया में कदम रखते हैं, तो जनता का ध्यान स्वाभाविक रूप से उनकी ओर खिंच जाता है। यह आकर्षण केवल प्रसिद्धि या ग्लैमर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस भरोसे का प्रतीक बन जाता है जो दर्शक अपने प्रिय सितारों पर करते हैं। भारत में फिल्मों और राजनीति का संबंध बहुत पुराना है। दक्षिण भारत में एम.जी. रामचंद्रन, जयललिता और एन.टी. रामाराव जैसे दिग्गज कलाकारों ने जनता के बीच अपार लोकप्रियता हासिल की और बाद में राजनीति में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की। हिंदी सिनेमा से भी अनेक कलाकार राजनीति की राह पर चले — चाहे वह सुनील दत्त हों, शत्रुघ्न सिन्हा, हेमा मालिनी या स्मृति ईरानी। इन सभी ने अपने अभिनय से लोगों को प्रभावित किया

रत्नों की जगमग में छिपा आत्मविश्वास: बिग बी की ज्योतिषीय यात्रा

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Read Also : hansi ke baadshah asrani ji kiyaadein   अमिताभ बच्चन सिर्फ़ सिनेमा के महानायक नहीं हैं, बल्कि भारतीय ज्योतिष और रत्नों के सबसे चर्चित चेहरे भी हैं।आपने अक्सर देखा होगा कि उनके हाथों में कई अंगूठियाँ चमकती हैं, नीले, पीले और हरे रंग की। ये सिर्फ़ फैशन का हिस्सा नहीं, बल्कि ग्रहों की ऊर्जा को संतुलित करने का एक माध्यम हैं। अमिताभ जी के हाथ में दिखाई देने वाले रत्न   नीलम (Blue Sapphire) शनि ग्रह की ऊर्जा को सशक्त करता है।पुखराज (Yellow Sapphire) बृहस्पति की कृपा का प्रतीक।माणिक (Ruby) सूर्य से जुड़ा, आत्मविश्वास और नेतृत्व का रत्न।इन रत्नों को धारण करने के पीछे उनके जीवन की कुछ सच्ची घटनाएँ जुड़ी हैं, जो इस विषय को और भी दिलचस्प बनाती हैं। रत्नों ने कब दी अमिताभ को नई रोशनी 1980 के दशक की शुरुआत में अमिताभ बच्चन का करियर चरम पर था। लेकिन कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान हुए भयानक एक्सीडेंट ने उनकी ज़िंदगी को हिला दिया। माना जाता है कि उस कठिन दौर में

जब वो जेलर हुआ अमर — गुडबाय Asrani

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Read Also : ratnon ki jagmag-me-chhipa-atmavishwas bigg b astrology   आज हम याद कर रहे हैं हिन्दी सिनेमा के एक चमकते सितारे, जिनकी हँसी ने हमारे दिलों में बचपन की यादें बुन दी थीं — Govardhan Asrani (अस्रानी जी)।वे आज हमारे बीच नहीं रहे। 20 अक्टूबर 2025 को मुंबई के एरोग़्य निधि अस्पताल, जुहू में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। अस्रानी जी का जन्म जयपुर में हुआ था। संघर्षों से भरी शुरुआत के बाद उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री की।  उनके पिता कालीन बेचते थे, और अस्रानी जी दिन में पढ़ते, रात में वॉयस‑आर्टिस्ट का काम करते थे।  उनकी सबसे यादगार भूमिका रही फिल्म Sholay में “अंग्रेजों के जमाने का जेलर” का किरदार। इसके साथ ही उन्होंने कई दशक तक हिंदी सिनेमा में हास्य‑निर्माण किया, 350+ फिल्मों में काम किया और हर पीढ़ी को हँसाया। अस्पताल में भर्ती थे, फेफड़ों में “पानी जमा होने” की समस्या थी। 20 अक्टूबर को दोपहर 3 बजे उनका देहांत हुआ। उन्होंने चाहा था कि उनकी अंतिम

वो आवाज़ जो हमारे दिलों को छू जाती थी – अमीन सयानी की कहानी

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भारत के रेडियो इतिहास में अमीन सयानी का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। 20वीं सदी के मध्य में जब रेडियो ही लोगों का मुख्य मनोरंजन और सूचना का साधन था, तब अमीन सयानी की आवाज़ ने लाखों दिलों को छू लिया। रेडियो सेलॉन के जरिए उन्होंने संगीत और बातों का ऐसा संगम पेश किया, जो आज भी याद किया जाता है। अमीन सयानी का परिचय अमीन सयानी का जन्म 21 दिसंबर 1932 को मुंबई में हुआ था। रेडियो के प्रति उनका लगाव परिवार से ही था क्योंकि उनके बड़े भाई हामिद सयानी भी एक प्रसिद्ध रेडियो प्रस्तुतकर्ता थे। 1952 में मात्र 20 वर्ष की उम्र में अमीन सयानी ने श्रीलंका के रेडियो सेलॉन से अपना करियर शुरू किया। उस समय भारत में फिल्मी गीतों पर बैन था, इसलिए रेडियो सेलॉन उन गीतों को लोगों तक

Google का $15 बिलियन निवेश: विशाखापत्तनम में विशाल AI हब बनेगा

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Read Also : क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानों की नौकरियां छीन लेगा? / भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा देने के लिए Google ने हाल ही में विशाखापत्तनम में एक बड़ा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डेटा सेंटर हब बनाने के लिए 15 अरब डॉलर का निवेश किया है। यह निवेश भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर के लिए मील का पत्थर साबित होगा और हजारों नए रोजगार पैदा करेगा।  विशाखापत्तनम में Google का AI हब: प्रोजेक्ट का महत्व विशाखापत्तनम की भौगोलिक स्थिति और टेक्नोलॉजी इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण Google ने इसे AI हब के लिए चुना है। यह हब न केवल भारत के लिए बल्कि एशिया क्षेत्र के लिए भी

ऑनलाइन शॉपिंग से पहले का दौर और आज का बदलता भारत

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भारत में खरीदारी का तरीका समय के साथ बहुत बदल चुका है। जहाँ आज हर चीज़ मोबाइल पर एक क्लिक से घर आ जाती है, कुछ साल पहले यही काम करने के लिए लोगों को घर से निकलकर बाजार जाना पड़ता था। खरीदारी सिर्फ ज़रूरत नहीं, एक अनुभव हुआ करता था।  जब हर चीज़ दुकान से खरीदी जाती थी ऑनलाइन शॉपिंग से पहले लोग अपने शहर या कस्बे के बाजार में जाकर ही सामान खरीदते थे। शादी हो, त्योहार हो या रोज़मर्रा का राशन, हर चीज़ के लिए दुकान पर जाना ज़रूरी होता था। दुकानदार से बात करते हुए मोलभाव किया जाता, प्रोडक्ट को हाथ से छूकर देखा जाता और फिर भरोसे से खरीदा जाता। उदाहरण के लिए 2000 से 2010 तक के समय में ज्यादातर लोग त्योहारी सीज़न में कपड़ों की खरीदारी के लिए स्थानीय मार्केट में जाते थे। बड़ी-बड़ी दुकानों में भीड़ लग जाती थी। दुकानदार ग्राहक को पहचानते थे और कई बार उधार पर भी सामान दे देते थे। मोबाइल पर पेमेंट का चलन नहीं था, ज़्यादातर लोग नकद में ही भुगतान करते थे।  त्योहारों और शादी के मौसम की रौनक दिवाली या शादी के मौसम में पूरे बाजार में उत्सव जैसा माहौल होता था। कपड़े खरीदने के लिए दर्जियों की दुकान ...

पेरिस की सड़कों पर भारत की यादें : एक पुराना सफर

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( भारतीयों का पेरिस से जुड़ाव एक लंबा सफर ) पेरिस, जो कला और संस्कृति का विश्व प्रसिद्ध केंद्र है, सदियों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। भारतीयों का पेरिस से जुड़ाव भी एक लंबा और भावुक सफर रहा है, जो 20वीं सदी की शुरुआत से शुरू होकर आज तक जीवित है। भारतीयों का पेरिस आना मुख्य रूप से शिक्षा, व्यापार और कला की वजह से हुआ। 1900 के दशक के शुरुआती वर्षों में कई भारतीय छात्र और कलाकार उच्च शिक्षा और कला की खोज में पेरिस आए। यहाँ के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों और कला संस्थानों ने भारतीय युवाओं को अपनी ओर खींचा। फ्रांस की सांस्कृतिक और

समय में थमा हुआ शहर चेत्तिनाड,जहाँ हवेलियाँ बोलती हैं

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Read Also : paris ki sadkon par-bharat-ki-yaadein passage brady history   Chettinad a timeless town दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित चेत्तिनाड एक ऐसा क्षेत्र है जिसने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई है। यह क्षेत्र नागरथर या चेत्तियार समुदाय का पारंपरिक घर माना जाता है। नागरथर समुदाय अपनी व्यापारिक समझ, उदार दानशीलता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। सदियों पहले जब भारत व्यापार के केंद्रों में से एक था, तब इस समुदाय ने बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में व्यापार का विशाल नेटवर्क स्थापित किया। इस वैश्विक दृष्टि और संगठन ने चेत्तिनाड को समृद्धि और पहचान दिलाई। भव्य हवेलियों में झलकती समृद्धि चेत्तिनाड की सबसे प्रभावशाली पहचान इसकी भव्य हवेलियों में झलकती है। इन हवेलियों का निर्माण उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के बीच हुआ था, जब नागरथर व्यापारी वर्ग अपने स्वर्ण काल में था। बर्मी टीक की लकड़ी, इटली की टाइलें और यूरोपीय संगमरमर से सजे ये घर भारतीय पारंपरिक वास्तुकला और विदेशी प्रभाव का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। विशाल आंगन, नक्काशीदार

जानिए दुनिया के किन-किन देशों में मनाई जाती है दीवाली

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सिंगापुर में दीपावली  क्या आप जानते हैं कि दीवाली सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी धूमधाम से मनाई जाती है? जहाँ-जहाँ भारतीय समुदाय बसा है, वहाँ यह पर्व एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है। पड़ोसी देशों में दीवाली का महत्व भारत के पड़ोसी देश नेपाल में दीवाली को ‘तिहार’ कहा जाता है। यह पाँच दिन तक चलने वाला पर्व है जिसमें लक्ष्मी पूजन के साथ पशु-पक्षियों और भाई-बहन के रिश्तों का सम्मान किया जाता है। श्रीलंका में यह त्योहार तमिल हिंदू समुदाय में विशेष रूप से मनाया जाता है। लोग मंदिरों में पूजा करते हैं, घर सजाते हैं और पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं। दोनों ही देशों में दीवाली को धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व के रूप में गहरा महत्व दिया जाता है।  एशिया और कैरेबियन देशों में दीपावली उत्सव मलेशिया और सिंगापुर में दीपावली एक सरकारी अवकाश होता है। लोग अपने घरों को रंगोली और लाइटों से सजाते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। त्रिनिदाद एंड टोबैगो और फ़िजी में भी दीवाली बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। यहाँ यह न सिर्फ धार्मिक पर्व बल्कि एक राष्ट्रीय उत्सव बन चुका है। सरकार और स्थानी...

लद्दाख की अनोखी विवाह प्रणाली: परंपरा और आधुनिकता का संगम

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अनोखी विवाह प्रणाली भारत के उत्तर में स्थित लद्दाख अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ठंडे मौसम और बौद्ध संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन यहाँ की एक और खास बात है -इसकी विवाह प्रणाली। लद्दाख में शादी केवल दो लोगों का मिलन नहीं होती, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव की तरह मनाई जाती है। पारंपरिक रीति-रिवाज़, पारिवारिक निर्णय और समुदाय की भागीदारी इस प्रथा को और भी अनोखा बना देती है।  पारंपरिक ‘अरेंज मैरिज’ की प्रथा लद्दाख में शादी प्रायः अरेंज मैरिज यानी पारिवारिक तय की गई शादियों के रूप में होती है। विवाह के लिए वर और वधू के परिवार आपस में बैठकर निर्णय लेते हैं। कई बार बच्चे की शादी का प्रस्ताव बचपन में ही तय कर दिया जाता है। वर और वधू की राशि, परिवार की स्थिति और समाज में प्रतिष्ठा को ध्यान में रखा जाता है। शादी की तारीख ज्योतिष के अनुसार निकाली जाती है और इसे बहुत शुभ अवसर माना जाता है। विशेष बात– लद्दाख में शादी से पहले दोनों परिवारों के बीच आपसी सम्मान और

नरेंद्र मोदी रोज़ कितनी नींद लेते हैं? ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे

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 नरेंद्र मोदी और उनकी कम नींद की आदत: एक दृष्टिकोण भारत  के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल देश के सबसे चर्चित नेताओं में से एक हैं, बल्कि उनकी मेहनत और समर्पण के लिए भी जाने जाते हैं। उनका दिन बेहद व्यस्त होता है, लेकिन इसके बावजूद वह अक्सर केवल 4-5 घंटे की नींद लेकर भी पूरी ऊर्जा के साथ काम करते हैं। उनकी यह कम नींद की आदत उनके कठोर परिश्रम, अनुशासन और आत्म-संयम का प्रमाण है।  मोदी की दिनचर्या और नींद का महत्व नरेंद्र मोदी की दिनचर्या बहुत ही सख्त और अनुशासित है। वे सुबह बहुत जल्दी उठते हैं, आमतौर पर 4 बजे से पहले। उनकी शुरुआत योग और ध्यान से होती है, जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। योग से वे दिनभर की थकान को दूर करते हैं और अपने मन को शांत रखते हैं। नींद की कमी के बावजूद, मोदी जी अपनी ऊर्जा बनाए रखने के लिए पौष्टिक आहार और नियमित व्यायाम करते हैं। वे अक्सर छोटे ब्रेक लेकर अपने दिन को संतुलित करते हैं, ताकि उनकी कार्यक्षमता में कमी न आए। उनके सहयोगी बताते हैं कि वे अपने काम में इतने लीन रहते हैं कि नींद की कमी उनके काम पर ज्यादा असर नहीं ...

दुनिया की पहली फोटो की कहानी

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जानिए कैसे जोसेफ नाइसफोर निएप्स ने 1826 में इतिहास की पहली फोटो ली ( दुनिया की पहली फोटो ) 1826 की एक फ्रांस की दोपहर में, जोसेफ नाइसफोर निएप्स नाम के एक वैज्ञानिक ने इतिहास की पहली तस्वीर कैद की। उस वक्त कैमरे आज जैसे नहीं थे, बल्कि एक बड़ा लकड़ी का डिवाइस था जिसमें बिटुमेन नामक केमिकल लगी एक प्लेट थी। उन्होंने अपने घर की खिड़की से बाहर का दृश्य उस प्लेट पर कैमरा ऑब्स्क्यूरा की मदद से कैद किया। इस प्रक्रिया में सूरज की रोशनी लगभग 8 घंटे तक लगी रही। धीरे-धीरे एक धुंधली सी परछाई प्लेट पर उभरने लगी, जो दुनिया की पहली तस्वीर बनी। इसे “View from the Window at Le Gras” कहा जाता है। जोसेफ निएप्स को उस वक्त शायद पता नहीं था कि उनके इस छोटे प्रयोग से पूरी दुनिया की यादें कैद करने का रास्ता खुल जाएगा। इस तस्वीर ने फोटोग्राफी की नींव रखी, जो आगे चलकर मोबाइल कैमरे और डिजिटल

एक कप चाय और कुछ अधूरी बातें : शहर के कोने से एक कहानी

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  बारिश की कुछ बूँदें, ठंडी हवा, और हाथ में मिट्टी की कुल्हड़ में गर्म चाय... शहर की भागती-भागती सड़कों के बीच एक कोना ऐसा भी था जहाँ वक्त रुक सा जाता था। कोई घड़ी नहीं चलती थी वहाँ, सिर्फ धुएँ की एक सीधी लकीर और चाय की धीमी चुस्की चलती थी। वहीं एक पुरानी-सी लकड़ी की बेंच थी, जिस पर रोज़ शाम ठीक 6 बजे एक बुज़ुर्ग आ बैठते। उनका नाम किसी को नहीं पता था, और शायद ज़रूरत भी नहीं थी। उनका आना, एक कप चाय लेना, और फिर दूर कहीं खो जान- ये सब इतना नियमित हो गया था कि जैसे वो उस जगह का हिस्सा बन गए हों। मैं भी वहीं बैठा करता था, अक्सर अकेला, कभी-कभी अपने साथ कुछ अधूरी बातें लेकर। वो बुज़ुर्ग और उनकी ख़ामोशी एक दिन मैंने पूछ ही लिया - "बाबूजी, रोज़ अकेले क्यों आते हैं?" उन्होंने मुस्कुरा कर कहा - "कभी कोई साथ था, अब चाय ही बची है

क्या आपको पता है , लगभग 4 अरब कप चाय पी जाती है हर दिन भारत में

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एक अन्य स्टोरी ,भारत की चाय: एक स्वाद जो आपको अपने घर की याद दिलाए भी पढ़ें   भारत: चाय का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश चाय सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि भारत की पहचान है। सुबह से लेकर शाम तक, देश के हर कोने में चाय की महक और स्वाद लोगों को जोड़ती है। आइए जानते हैं कि भारत में रोजाना कितनी चाय पी जाती है और इसके पीछे की दिलचस्प कहानी क्या है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और उपभोक्ता देश है। यहाँ हर दिन लगभग 4 अरब कप चाय पी जाती है। यह संख्या सोचने पर मजबूर कर देती है कि भारत की जनता चाय को कितना प्यार करती है। लगभग हर भारतीय दिन में 2 से 3 कप चाय जरूर पीता है, चाहे वह शहर का ऑफिस कर्मचारी हो या गाँव का किसान।   चायवाले की कहानी: हर गली का जादूगर भारत की सड़कों पर चायवाले हर सुबह अपनी छोटी-छोटी दुकानों को सजाते हैं। उनके हाथों की बनी मसाला चाय लोगों को न केवल गर्माहट देती है, बल्कि दिल से जुड़ने का एहसास भी कराती है। अदरक, इलायची, दालचीनी और लौंग जैसे मसाले उनकी खास रेसिपी का हिस्सा होते हैं, जो हर कप को खास बनाते हैं। आपकी दूसरी चाय से जुड़ी कहानी चाय भारत के त्योहारों, मेलों, और ...

भारत की चाय: एक स्वाद जो आपको अपने घर की याद दिलाए

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4 अरब कप चाय पी जाती है हर दिन भारत में   नीलगिरि चाय गार्डन  नीलगिरी चाय: ताज़गी और मधुरता का संगम सुबह की पहली किरण के साथ, अर्जुन ने अपने बैग में चाय की कुछ पत्तियाँ भरीं और निकल पड़ा एक खास सफर पर  भारत की सबसे अच्छी चाय खोजने। उसका पहला पड़ाव था दार्जिलिंग। दार्जिलिंग की ताजी ठंडी हवा में अर्जुन ने देखा कैसे पहाड़ों की ढलानों पर चमकती चाय की बगानें। वहाँ की चाय, जिसे ‘चाय का शैम्पेन’ कहा जाता है, उसे पहली चुस्की में ही अपनी मधुर खुशबू और नाजुक स्वाद से मंत्रमुग्ध कर दिया। "यह तो सचमुच खास है," उसने कहा। अर्जुन का अगला कदम था पूर्वोत्तर की धूप से लिपटी धरती असम। यहाँ की चाय थी बिल्कुल विपरीत: गाढ़ी, तीव्र, और मसलादार। अर्जुन ने गर्म दूध के साथ इसे पीया और महसूस किया कि असम की चाय में एक अलग ही ताकत है, जो सुबह की थकान को पूरी तरह मिटा देती है।फिर वह गया दक्षिण की ओर, जहाँ नीलगिरी के पहाड़ों पर सुगंधित चाय की बगानें थीं। नीलगिरी की चाय हल्की और फूलों जैसी थी, जो गरमी में भी ताजगी

सैयारा: 2025 का सबसे लोकप्रिय हिंदी गीत

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    एक अन्य स्टोरी ,दुनिया की पहली फिल्म और सिनेमा के जन्म के बारे में भी पढ़ें               YouTube पर रिलीज़ होने के कुछ ही हफ्तों में इसने करोड़ों व्यूज़ पा लिए सैयारा – ये सिर्फ़ एक गीत नहीं, बल्कि एक एहसास है जिसे हर उस दिल ने महसूस किया है जो कभी प्यार में पड़ा है या उससे बिछड़ गया है। 2025 में जब यह गाना रिलीज़ हुआ, तब किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह गाना लाखों लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बन जाएगा। अरिजीत सिंह और श्रेया घोषाल की आवाज़ों ने जैसे इसमें जान डाल दी हो। उनकी गायकी में जो दर्द, मोहब्बत और सुकून है, वो सीधे दिल को छू जाता है। गाने के बोल इरशाद कामिल ने लिखे हैं, जिनकी कलम ने हमेशा दिलों की भाषा बोली है। “तू दूर है फिर भी दिल के पास है” जैसी पंक्तियाँ उन रिश्तों की कहानी कहती हैं जो साथ तो नहीं, लेकिन एक-दूसरे से जुदा भी नहीं। प्रीतम का संगीत इस पूरे माहौल को और भी गहराई देता है। न कोई भारी वाद्य यंत्र, न कोई दिखावा — बस सादगी में डूबा हुआ संगीत, जो हर शब्द को महसूस कराता है। इस गाने की ख़ास बात ये है कि यह सिर्फ़ एक प्रेम कहानी ...

क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानों की नौकरियां छीन लेगा?

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Read Also : Google का $15 बिलियन निवेश: विशाखापत्तनम में विशाल AI हब बनेगा /   दुनिया तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की ओर बढ़ रही है। अब मशीनें सिर्फ काम नहीं कर रहीं, बल्कि सोचने, समझने और निर्णय लेने लगी हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है - क्या इंसानों के लिए काम बचा रहेगा? आर्टिफिशियलइंटेलिजेंस नौकरी का भविष्य  आज AI का इस्तेमाल हर क्षेत्र में हो रहा है -ग्राहक सेवा से लेकर मेडिकल रिपोर्ट बनाने तक, कारखानों में मशीनों से काम लेने से लेकर लेख लिखने तक। इससे कई लोगों को लगता है कि इंसानों की जरूरत कम होती जा रही है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। जब भी कोई नई तकनीक आई है, उसने पुराने कामों को बदला जरूर है, लेकिन नए कामों को भी जन्म

दुनिया की पहली फिल्म और सिनेमा के जन्म के बारे में जानें

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 सिनेमा की शुरुआत एक छोटे से प्रयोग से हुई, जिसने पूरी दुनिया के मनोरंजन के तरीके को बदल दिया। अक्सर लोग सोचते हैं कि सिनेमा की शुरुआत फ्रांस के ल्यूमियर ब्रदर्स ने की थी, जिन्होंने पेरिस के पास लियोन में 1895 में अपनी पहली फिल्म दिखाई। यह बात सही है कि उन्होंने सिनेमा को लोकप्रिय बनाया और पहली बार इसे बड़े पर्दे पर जनता के सामने पेश किया। लेकिन अगर हम इतिहास की गहराई में जाएं तो पाएंगे कि दुनिया की सबसे पहली फिल्म वास्तव में लुईस ले प्रिंस ने बनाई थी, जो एक फ्रांसीसी आविष्कारक थे। लुईस ले प्रिंस ने अपनी पहली फिल्म का नाम रखा था "Roundhay Garden Scene", जिसे उन्होंने 14 अक्टूबर 1888 को इंग्लैंड के लीड्स शहर के Roundhay गार्डन में फिल्माया था। यह फिल्म मात्र दो सेकंड की थी, जिसमें उनके परिवार के कुछ सदस्य एक बगीचे में टहलते हुए दिखाई देते हैं। यह फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट और साइलेंट (बिना आवाज़) थी, लेकिन इसे दुनिया की पहली चलती तस्वीर माना जाता है। हालांकि, लुईस ले प्रिंस का योगदान बहुत बड़ा था, लेकिन वह रहस्यमय तरीके से 1890 में गायब हो गए, और उनके काम का पूरा क्रेडिट नहीं मिल ...

एक रिक्शावाले की बेटी बनी IAS

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 संघर्ष की मिसालआरती के पिता, रामप्रसाद यादव, एक साधारण रिक्शा चलाने वाले हैं। सुबह से लेकर देर शाम तक पसीना बहाकर जो कुछ भी कमाते थे, उसमें मुश्किल से घर का खर्च चलता था। लेकिन उनके पास एक अमूल्य चीज़ थी — अपनी बेटी के सपनों पर अटूट भरोसा।आरती का बचपन तंगहाली में बीता। घर में न पढ़ने की अच्छी जगह थी, न बिजली का स्थायी इंतज़ाम। वो अक्सर स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करती थी। स्कूल से लौटने के बाद माँ का हाथ बँटाना, छोटे भाई-बहनों की देखभाल और फिर किताबों में डूब जाना — यही उसका रोज़ का रूटीन था। जब दसवीं कक्षा में उसने अपने शिक्षक से कहा कि वह IAS बनना चाहती है, तो सबने मज़ाक उड़ाया। किसी ने कहा, "इतना बड़ा सपना मत देखो, टूट जाएगा।" मगर उसके पिता ने उसका सिर सहलाते हुए कहा — "बेटी, अगर तू ठान ले तो तेरा बाप तुझे मंज़िल तक छोड़ कर आएगा — चाहे पैदल ही क्यों न जाना पड़े!"आरती ने छात्रवृत्ति के सहारे ग्रेजुएशन किया। दिन में कॉलेज, शाम को ट्यूशन पढ़ाकर घर चलाने में मदद और रात भर किताबों में डूब जाना — यही उसकी ज़िंदगी बन गई थी। UPSC की तैयारी के लिए उसने दिल्ली का रुख...

इतिहास की पटरी पर दौड़ती शान: ग्वालियर महाराजा की ट्रेन की कहानी

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इतिहास की पटरी पर दौड़ती शान: ग्वालियर महाराजा की ट्रेन की कहानी   टीटो सिंधिया के साथ ग्वालियर में  भारत का शाही इतिहास हमेशा से ही अपने भव्य महलों, राजसी जीवनशैली और विलासिता के लिए जाना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि राजा-महाराजा जब यात्रा पर निकलते थे, तो उनका सफर कैसा होता था? ग्वालियर के महाराजा द्वारा इस्तेमाल की गई शाही ट्रेन इस सवाल का भव्य उत्तर देती है। यह ट्रेन सिर्फ एक यात्रा का साधन नहीं थी, बल्कि चलता-फिरता महल थी, जिसमें हर सुविधा और सजावट किसी राजमहल से कम नहीं थी। शाही ठाठ का नमूना: ग्वालियर की वह ट्रेन जो महल से कम नहीं थी ग्वालियर रियासत के महाराजा जिवाजीराव सिंधिया  ने इस ट्रेन को बनवाया था, जो मुख्य रूप से शाही दौरों और विशेष यात्राओं के लिए उपयोग की जाती थी। ट्रेन के डिब्बे अत्यंत भव्य और सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाए गए थे। इनमें शाही बैठक कक्ष, शानदार शयनकक्ष, डाइनिंग एरिया और स्नानघर तक की सुविधा थी। ट्रेन के भीतर चांदी के बर्तन, विदेशी कालीन और दीवारों पर बारीक नक्काशी इस ट्रेन को खास बनाते थे। तकनीकी दृष्टि से भी यह ट्रेन अपने समय से का...

क्या इंदौर टक्कर दे सकता है जापान और स्वीडन के साफ शहरों को?

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जैसलमेर की सरहद पर ज़िंदगी भारत में स्वच्छता के मामले में इंदौर एक मिसाल बन चुका है। यह शहर लगातार कई वर्षों से देश के सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में शीर्ष पर बना हुआ है। इसकी सफाई की सफलता की कहानी मेहनत, जागरूकता और सही योजना की मिसाल है। इंदौर की सफाई में सबसे बड़ा योगदान उसके नागरिकों का है, जो स्वच्छता को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। यहां के लोग न केवल खुद स्वच्छता का पालन करते हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करते हैं। नगर निगम और स्थानीय प्रशासन की मेहनत भी इस सफलता के पीछे बड़ी वजह है। कूड़ा प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाया गया है, जिससे कूड़ा ठीक तरह से वर्गीकृत होकर रिसाइक्लिंग और कंपोस्टिंग के लिए भेजा जाता है। इसके साथ ही, सफाई नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाता है, और नियम तोड़ने वालों को सख्त जुर्माने भी भुगतने पड़ते हैं। नगर निगम नियमित सफाई अभियान चलाता है और कूड़ा उठाने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराता है। सफाई कर्मी समय पर कूड़ा उठाने और शहर को साफ रखने में जुटे रहते हैं। इसके अलावा, कई स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय समुदाय भी सफाई अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाते ...

जैसलमेर की सरहद पर ज़िंदगी: आखिरी गाँव की कहानी, जो सबको जाननी चाहिए

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राजस्थान के जैसलमेर जिले में बसे कुछ गाँव ऐसे हैं जो भारत की आखिरी सीमा से लगते हैं। ये गाँव न केवल भूगोल की दृष्टि से खास हैं, बल्कि यहां के लोग, उनका जीवन और उनके अनुभव देश की असली तस्वीर को सामने लाते हैं। ऐसा ही एक गाँव है गजुओं की बस्ती, जिसे जैसलमेर का आखिरी गाँव भी कहा जाता है। यह गाँव भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ की आबादी बेहद कम है ,करीब 150 लोग  और उनका जीवन बेहद साधारण परन्तु साहसी है। गजुओं की बस्ती: सीमा पर बसता है असली भारत गाँव में पक्के मकान बहुत कम हैं। अधिकांश लोग मिट्टी और झोपड़ीनुमा घरों में रहते हैं। बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की यहाँ भारी कमी है। पीने के पानी के लिए महिलाओं को कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। बच्चों के लिए स्कूल की दूरी अधिक होने के कारण शिक्षा भी एक बड़ी चुनौती है। लेकिन इसके बावजूद, यहाँ के लोग न तो पलायन करते हैं और न ही शिकायत करते हैं। उनके अंदर देशभक्ति की भावना इतनी प्रबल है कि वे हर कठिनाई को गर्व से सहन करते हैं। इन गाँवों की एक खास बात यह है कि यहाँ हर...

हर घर में होना चाहिए ये चमत्कारी पौधा – जानिए एलोवेरा के जबरदस्त फायदे

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अलोवेरा के मुख्य फायदे, घरेलू उपयोग, फेस पैक और जूस की रेसिपी, साइड इफेक्ट्स और रोज़मर्रा के नुस्खे — जानिए कैसे यह पौधा आपकी त्वचा, बाल और पाचन को मजबूत बनाता है। अलोवेरा (Aloe vera) सदियों से आयुर्वेद और पारंपरिक उपचारों में उपयोग होता आ रहा है। यह मात्र एक सजावटी पौधा नहीं बल्कि एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट और मॉइस्चराइजिंग गुणों से भरपूर प्राकृतिक औषधि है। चलिए जानते हैं उसके प्रमुख फायदे और कुछ सरल घरेलू नुस्खे जो आप आजमाकर तुरंत फायदा देख सकते हैंअलोवेरा जेल में प्राकृतिक मॉइस्चराइज़र होते हैं जो त्वचा को नमी दे कर मुलायम बनाते हैं।एंटी-बैक्टेरियल और सूजन घटाने वाले गुण मुंहासों और दाग-धब्बों में मदद करते हैं। कट-छिल के घाव और जलने (सूर्य-दीप्ति या हल्की जलन) पर लगाने से रिकवरी तेज होती है। सिर की त्वचा का pH संतुलित कर के बालों की जड़ें मजबूत करता है; डैंड्रफ घटता हैअलोवेरा जूस पाचन तंत्र को शांत करता है, कब्ज़ और अल्सर के लक्षणों में लाभ दे सकता है (नियमित और सीमित मात्रा में)एंटीऑक्सीडेंट गुण फ्री रेडिकल्स से लड़ते हैं और शरीर की रक्षा को बेहतर बनाते हैं। एंटी-इन्फ्लेमेटरी ल...

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लोगो की बदलती दुनिया

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Read Also : bharat ka sabse ooncha dakghar himalay ki choti se judi kahani   आज का युग तकनीक का युग है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने हमारे जीवन के लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। चाहे वह स्वास्थ्य सेवा हो, शिक्षा, व्यापार या डिज़ाइन – AI हर जगह मौजूद है। खासकर, AI से बने लोगो (Logo) डिज़ाइन अब ब्रांड पहचान (Brand Identity) को नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं। AI टूल्स की मदद से मिनटों में दर्जनों लोगो डिज़ाइन तैयार किए जा सकते हैं। इससे समय की बचत होती है और व्यवसाय तुरंत विकल्पों का मूल्यांकन कर सकते हैं। पारंपरिक ग्राफिक डिज़ाइन में अच्छे लोगो के लिए हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन AI-आधारित टूल्स से कम लागत में भी शानदार लोगो बन सकते हैं। AI टूल्स यूज़र्स को रंग, फॉन्ट, आइकन और लेआउट बदलने की सुविधा देते हैं, जिससे ब्रांड की विशिष्टता बनी रहती है। AI यूज़र की पसंद, इंडस्ट्री ट्रेंड और मार्केट रिसर्च के आधार पर लोगो डिज़ाइन करता है, जिससे लोगो ज्यादा प्रभावी बनता है। AI टूल्स किसी डिजाइनर की तरह समय-सीमा से बंधे नहीं होते। आप कभी भी, कहीं भी डिज़ाइन बना सकते है...