लाहौल-स्पीति: बर्फ़ीली वादियों का अनकहा सौंदर्य

चित्र
हिमाचल प्रदेश की गोद में बसा लाहौल-स्पीति एक ऐसा इलाका है जहाँ हर मोड़ पर प्रकृति का नया रंग दिखता है। ऊँचे-ऊँचे बर्फ़ से ढके पहाड़, नीले आसमान के नीचे चमकती नदियाँ, और प्राचीन मठों की घंटियाँ—ये सब मिलकर उस शांति का एहसास कराते हैं जो शब्दों से परे है। यहाँ की हवा में एक अलग ताज़गी है, जैसे हर सांस में हिमालय की आत्मा बसती हो। लाहौल-स्पीति की धरती पर कदम रखते ही ऐसा लगता है मानो आप किसी और दुनिया में आ गए हों। पत्थर के बने छोटे-छोटे गाँव, लकड़ी और मिट्टी से बने घर, और दूर-दूर तक फैली निस्तब्ध वादियाँ—इन सबमें जीवन की एक सरल लय बहती है। यहाँ का हर दिन सूर्योदय से शुरू होता है जब बर्फ़ से ढकी चोटियों पर सुनहरी किरणें पड़ती हैं, और शाम होते-होते पूरा आसमान लालिमा से रंग जाता है। यह इलाका सिर्फ़ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। बौद्ध धर्म के मठ, जैसे की-मठ या ताबो मठ, इस क्षेत्र की आत्मा हैं। यहाँ की प्रार्थनाओं की ध्वनि और घूमते हुए प्रार्थना-चक्र इस घाटी में एक अद्भुत आध्यात्मिक वातावरण रचते हैं। स्थानीय लोग सादगी और अपनापन से भरे हैं, औ...

डिजिटल दुनिया की मार : आँखें थकीं, कान पके

 अब तो आँखें और कान भी छुट्टी पर हैं

आज के आधुनिक युग में इंसान तो जाग रहा है, पर उसकी आँखें और कान लगता है छुट्टी पर चले गए हैं।कभी जो आँखें समझने के लिए खुलती थीं, अब वो सिर्फ़ मोबाइल स्क्रीन देखने के लिए खुलती हैं।और जो कान “सुनने” के लिए बने थे, वो अब बस ब्लूटूथ ईयरफ़ोन में गाने भरते रहते हैं।

Read Also: जोहरन ममदानी: टैक्सी ड्राइवर के बेटे से न्यूयॉर्क सिटी के मेयर तक

आँखें अब क्या देखती हैं?

पहले आँखें प्रकृति की हरियाली, लोगों के चेहरे का भाव और आसमान में उड़ते पंछी देखती थीं।अब तो आँखें दिनभर बस स्क्रीन टाइम रिपोर्ट देखती हैं  “आपका औसत उपयोग 8 घंटे 43 मिनट।”कभी-कभी तो लगता है आँखें बोल दें “भाई, ज़रा हमें भी चार्जर लगा दो”

और कानों की हालत तो और भी मज़ेदार है

पहले कान पड़ोसी की गपशप, दादी की कहानियाँ और माँ की डाँट सुनते थे।अब कान बस

एक ही आवाज़ पहचानते हैं “नया नोटिफिकेशन आया है”,लोग अब किसी की बात कम, और रील्स का साउंड ज़्यादा सुनते हैं।कान तो बेचारे कब से कह रहे हैं “थोड़ा शांति चाहिए भाई”

सोशल मीडिया ने सबको सुपरहीरो बना दिया है

आँखें झपकने से पहले कैमरा ऑन, और कानों के लिए इयरफ़ोन ऑन ,अब तो हर इंसान अपने ही छोटे-से फ़िल्मी सेट में जी रहा है।कभी आँखें थक जाती हैं, तो वो भी सोचती हैं  “काश, हमें भी एयरप्लेन मोड मिल जाता”


टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट

प्रतापगढ़ विलेज थीम रिज़ॉर्ट Haryana — शहर के शोर से दूर देहात की सुकून भरी झलक

दुनिया की पहली फोटो की कहानी

पेरिस की सड़कों पर भारत की यादें : एक पुराना सफर

जिनेवा और इंटरलाकेन में देखने को मिलता है बॉलीवुड का जादू

भारत की काँच नगरी फ़िरोज़ाबाद: इतिहास, हुनर और परंपरा की कहानी

समय में थमा हुआ शहर चेत्तिनाड,जहाँ हवेलियाँ बोलती हैं

जोहरन ममदानी: टैक्सी ड्राइवर के बेटे से न्यूयॉर्क सिटी के मेयर तक

जानिए दुनिया के किन-किन देशों में मनाई जाती है दीवाली

शेखावाटी: हवेलियों की कहानी और व्यापारियों की विरासत