जानिए दुनिया के किन-किन देशों में मनाई जाती है दीवाली

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Read Also:लद्दाख की अनोखी विवाह प्रणाली: परंपरा और आधुनिकता का संगम   सिंगापुर में दीपावली  क्या आप जानते हैं कि दीवाली सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी धूमधाम से मनाई जाती है? जहाँ-जहाँ भारतीय समुदाय बसा है, वहाँ यह पर्व एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है। पड़ोसी देशों में दीवाली का महत्व भारत के पड़ोसी देश नेपाल में दीवाली को ‘तिहार’ कहा जाता है। यह पाँच दिन तक चलने वाला पर्व है जिसमें लक्ष्मी पूजन के साथ पशु-पक्षियों और भाई-बहन के रिश्तों का सम्मान किया जाता है। श्रीलंका में यह त्योहार तमिल हिंदू समुदाय में विशेष रूप से मनाया जाता है। लोग मंदिरों में पूजा करते हैं, घर सजाते हैं और पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं। दोनों ही देशों में दीवाली को धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व के रूप में गहरा महत्व दिया जाता है।  एशिया और कैरेबियन देशों में दीपावली उत्सव मलेशिया और सिंगापुर में दीपावली एक सरकारी अवकाश होता है। लोग अपने घरों को रंगोली और लाइटों से सजाते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। त्रिनिदाद एंड टोबैगो और फ़िजी में भी दीवाली बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। यहाँ य...

राज्य: एक आवश्यक बुराई – हर्बर्ट स्पेंसर का दृष्टिकोण


प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर
राज्य एक आवश्यक बुराई है — यह विचार गहरे राजनीतिक और दार्शनिक विमर्श का हिस्सा रहा है। यह कथन प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) से जुड़ा है, जिन्होंने राज्य की भूमिका पर कई क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए। वे मानते थे कि राज्य का अस्तित्व इसलिए है क्योंकि मनुष्य स्वयं अपने नैतिक दायित्वों का पालन नहीं करता। अगर समाज में सभी व्यक्ति आत्म-नियंत्रण, न्याय और पारस्परिक सहयोग से कार्य करें, तो राज्य की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।

हरबर्ट स्पेंसर जैसे चिंतकों के अनुसार, राज्य का निर्माण मानव समाज की कमजोरियों को संतुलित करने के लिए हुआ है। यह व्यवस्था समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी तो है, लेकिन यह हमेशा स्वतंत्रता पर नियंत्रण भी लगाता 

सीलिए इसे "आवश्यक बुराई" कहा गया है — ऐसी बुराई जो न हो तो अराजकता फैले, और हो तो स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।

ऐसे कई विचारक रहे हैं जिन्होंने राज्य की सीमाओं और उसकी अनिवार्यता को लेकर सवाल उठाए। थॉमस पेन (Thomas Paine), एक और विख्यात विचारक, ने भी कहा था 

कि "राज्य एक जरूरी बुराई है," खासकर तब जब वह लोगों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है या अपने दायरे से बाहर जाकर सत्ता का दुरुपयोग करता है।

राजनीतिक दर्शन में यह विचार बार-बार सामने आता है कि राज्य को छोटा, सीमित और जवाबदेह होना चाहिए। लिबर्टेरियन विचारधारा, जो न्यूनतम राज्य और अधिकतम व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पक्षधर है, इसी धारणा पर आधारित है।

आधुनिक युग में भी यह बहस जीवंत है — क्या राज्य हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करता है, या उसे सीमित करता है? क्या हम ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ राज्य की जरूरत ही न हो?

इन सवालों का कोई आसान उत्तर नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि "राज्य एक आवश्यक बुराई है" केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक चुनौती है — समाज के हर नागरिक के लिए यह सोचने की कि हम किस तरह की व्यवस्था में जीना चाहते हैं।


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