राज्य: एक आवश्यक बुराई – हर्बर्ट स्पेंसर का दृष्टिकोण
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प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर |
हरबर्ट स्पेंसर जैसे चिंतकों के अनुसार, राज्य का निर्माण मानव समाज की कमजोरियों को संतुलित करने के लिए हुआ है। यह व्यवस्था समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी तो है, लेकिन यह हमेशा स्वतंत्रता पर नियंत्रण भी लगाता
सीलिए इसे "आवश्यक बुराई" कहा गया है — ऐसी बुराई जो न हो तो अराजकता फैले, और हो तो स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।ऐसे कई विचारक रहे हैं जिन्होंने राज्य की सीमाओं और उसकी अनिवार्यता को लेकर सवाल उठाए। थॉमस पेन (Thomas Paine), एक और विख्यात विचारक, ने भी कहा था
कि "राज्य एक जरूरी बुराई है," खासकर तब जब वह लोगों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है या अपने दायरे से बाहर जाकर सत्ता का दुरुपयोग करता है।
राजनीतिक दर्शन में यह विचार बार-बार सामने आता है कि राज्य को छोटा, सीमित और जवाबदेह होना चाहिए। लिबर्टेरियन विचारधारा, जो न्यूनतम राज्य और अधिकतम व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पक्षधर है, इसी धारणा पर आधारित है।
आधुनिक युग में भी यह बहस जीवंत है — क्या राज्य हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करता है, या उसे सीमित करता है? क्या हम ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ राज्य की जरूरत ही न हो?
इन सवालों का कोई आसान उत्तर नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि "राज्य एक आवश्यक बुराई है" केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक चुनौती है — समाज के हर नागरिक के लिए यह सोचने की कि हम किस तरह की व्यवस्था में जीना चाहते हैं।
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