समय में थमा हुआ शहर चेत्तिनाड,जहाँ हवेलियाँ बोलती हैं

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  Chettinad a timeless town दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित चेत्तिनाड एक ऐसा क्षेत्र है जिसने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई है। यह क्षेत्र नागरथर या चेत्तियार समुदाय का पारंपरिक घर माना जाता है। नागरथर समुदाय अपनी व्यापारिक समझ, उदार दानशीलता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। सदियों पहले जब भारत व्यापार के केंद्रों में से एक था, तब इस समुदाय ने बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में व्यापार का विशाल नेटवर्क स्थापित किया। इस वैश्विक दृष्टि और संगठन ने चेत्तिनाड को समृद्धि और पहचान दिलाई। भव्य हवेलियों में झलकती समृद्धि चेत्तिनाड की सबसे प्रभावशाली पहचान इसकी भव्य हवेलियों में झलकती है। इन हवेलियों का निर्माण उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के बीच हुआ था, जब नागरथर व्यापारी वर्ग अपने स्वर्ण काल में था। बर्मी टीक की लकड़ी, इटली की टाइलें और यूरोपीय संगमरमर से सजे ये घर भारतीय पारंपरिक वास्तुकला और विदेशी प्रभाव का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। विशाल आंगन, नक्काशीदार दरवाजे और कलात्मक खिड़कियाँ इन हवेलियों को एक अलग ही भव्यता प्रदान करती हैं। ...

छुपा हुआ रहस्य: भर्मौर के 84 शिव मंदिरों की अद्भुत कहानी

 

यह मंदिर समूह हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला में भर्मौर (Bharmour) नगर में स्थित है। स्थान ऐसा है जहाँ एक समतल भूमि पर 84 मंदिरों का परिसर बना हुआ है — इसलिए इसे  Temple Complex” या “84 मंदिर परिसर” कहा जाता है। यह मंदिर समूह भर्मौर के केंद्र में है और इलाके की धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान में अहम भूमिका निभाता है। 

इस मंदिर परिसर का मुख्‍य मंदिर श्री शिव जी को समर्पित है, जिसमें एक बड़ा शिवलिंग प्रतिष्ठित है।मुख्य शिव मंदिर एक स्क्वायर प्लिंथ (वर्गी आधार मंच) पर स्थित है। 

शिव मंदिर की इमारत की शैली मध्य प्रातिहार (Middle Pratihara style) मानी जाती है। इसके शिखर (ऊपर की मीनार) को मध्यम ऊँचाई की “बीहीव (beehive)” शैली का बताया गया है, यानी ऊपर की ओर संकरा होता जाना।बाहरी दीवारों पर उत्कीर्ण (sculpture) सजावट अपेक्षाकृत साधारण रखी गई है।बाद में कई मरम्मत एवं पुनर्निर्माण कार्य हुए, विशेषकर राजा उदय सिंह के शासनकाल (लगभग 1690–1720 ई.) के दौरान। 

पौराणिक-कथाएँ एवं धार्मिक महत्व

किंवदंती के अनुसार, ब्रह्मपुरी नामक इस स्थान पर पहले देवी ब्रह्माणी (Brahmani Devi) वास करती थीं। एक दिन शिव जी ८४ सिद्धों (योगी संतों) के साथ मणिमहेश की यात्रा पर जा रहे थे, और वे ब्रह्मपुरी में एक रात विश्राम हेतु रुके। उसी रात, देवी ब्रह्माणी जब लौटती हैं और देखती हैं कि उनके बगीचे में आग के धुएँ उठ रहे हैं (सिद्धों ने अग्नि जलाई थी), तो वे क्रोधित हो जाती हैं। शिव जी विनम्र होकर निवेदन करते हैं कि वे और सिद्ध उस रात उसी स्थान पर विश्राम करें। देवी ब्रह्माणी उनकी इच्छा स्वीकार करती हैं।

किंवदंती कहती है कि शिव जी ने सिद्धों को वहाँ ही स्थापित रहने का वरदान दिया, और वे ८४ शिवलिंगों में परिवर्तित हो गए। यहीं से 84 मंदिरों की परंपरा शुरू हुई।इसके अतिरिक्त, एक मान्यता यह भी है

कि जो तीर्थयात्री मणिमहेश जाना चाहते हैं, उन्हें इस मंदिर समूह में स्थित “ब्रह्माणी पूल (holy pool)” में स्नान करना अनिवार्य है।

यदि कोई इस स्नान को छोड़ देता है, तो माना जाता है कि उसकी मणिमहेश यात्रा का फल (श्रेय) अधूरा होगा। इतिहास एवं काल-परिवर्तन इस मंदिर समूह के कई मंदिर संभवतः 7वीं शताब्दी ईस्वी के आस-पास बनाए गए थे। बाद में राजा साहिल वर्मन ने कई मंदिरों का पुनर्निर्माण किया।राजा उदय सिंह के काल में भी मंदिरों की मरम्मत एवं संवर्धन हुआ।

पूजा-उत्सव एवं धार्मिक गतिविधियाँमहाशिवरात्रि के अवसर पर यह मंदिर परिसर विशेष सजावट एवं उत्सवों से सजा जाता है। स्थानीय लोग एवं तीर्थयात्री बड़े उत्साह से यहाँ आते हैं और फूल-मालाओं, दीप-प्रज्ज्वलन आदि द्वारा पूजा करते हैं। यह मंदिर समूह मणिमहेश यात्रा (Manimahesh Yatra) के मार्ग में आता है और यात्रियों का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। 



        

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