समय में थमा हुआ शहर चेत्तिनाड,जहाँ हवेलियाँ बोलती हैं

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  Chettinad a timeless town दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित चेत्तिनाड एक ऐसा क्षेत्र है जिसने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई है। यह क्षेत्र नागरथर या चेत्तियार समुदाय का पारंपरिक घर माना जाता है। नागरथर समुदाय अपनी व्यापारिक समझ, उदार दानशीलता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। सदियों पहले जब भारत व्यापार के केंद्रों में से एक था, तब इस समुदाय ने बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में व्यापार का विशाल नेटवर्क स्थापित किया। इस वैश्विक दृष्टि और संगठन ने चेत्तिनाड को समृद्धि और पहचान दिलाई। भव्य हवेलियों में झलकती समृद्धि चेत्तिनाड की सबसे प्रभावशाली पहचान इसकी भव्य हवेलियों में झलकती है। इन हवेलियों का निर्माण उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के बीच हुआ था, जब नागरथर व्यापारी वर्ग अपने स्वर्ण काल में था। बर्मी टीक की लकड़ी, इटली की टाइलें और यूरोपीय संगमरमर से सजे ये घर भारतीय पारंपरिक वास्तुकला और विदेशी प्रभाव का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। विशाल आंगन, नक्काशीदार दरवाजे और कलात्मक खिड़कियाँ इन हवेलियों को एक अलग ही भव्यता प्रदान करती हैं। ...

जैसलमेर की सरहद पर ज़िंदगी: आखिरी गाँव की कहानी, जो सबको जाननी चाहिए

राजस्थान के जैसलमेर जिले में बसे कुछ गाँव ऐसे हैं जो भारत की आखिरी सीमा से लगते हैं। ये गाँव न केवल भूगोल की दृष्टि से खास हैं, बल्कि यहां के लोग, उनका जीवन और उनके अनुभव देश की असली तस्वीर को सामने लाते हैं। ऐसा ही एक गाँव है गजुओं की बस्ती, जिसे जैसलमेर का आखिरी गाँव भी कहा जाता है। यह गाँव भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ की आबादी बेहद कम है ,करीब 150 लोग  और उनका जीवन बेहद साधारण परन्तु साहसी है।

गजुओं की बस्ती: सीमा पर बसता है असली भारत

गाँव में पक्के मकान बहुत कम हैं। अधिकांश लोग मिट्टी और झोपड़ीनुमा घरों में रहते हैं। बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की यहाँ भारी कमी है। पीने के पानी के लिए महिलाओं को कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। बच्चों के लिए स्कूल की दूरी अधिक होने के कारण शिक्षा भी एक बड़ी चुनौती है। लेकिन इसके बावजूद, यहाँ के लोग न तो पलायन करते हैं और न ही शिकायत करते हैं। उनके अंदर देशभक्ति की भावना इतनी प्रबल है कि वे हर कठिनाई को गर्व से सहन करते हैं।

इन गाँवों की एक खास बात यह है कि यहाँ हर नागरिक, चाहे वह किसान हो या महिला, सीमा पर तैनात बीएसएफ जवानों को अपने परिवार का हिस्सा मानता है। तानोट माता मंदिर जैसे स्थान, जो सीमा से सटे हैं, धार्मिक आस्था और देश की सुरक्षा भावना का प्रतीक बन चुके हैं। जब भी देश में कोई तनाव

की स्थिति होती है, इन सीमावर्ती गाँवों के लोग विशेष सावधानी बरतते हैं, लेकिन उनका आत्मविश्वास कभी नहीं डगमगाता।

हालांकि सरकार द्वारा स्मार्ट विलेज और बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट जैसी योजनाएँ चलाई जा रही हैं, लेकिन इन दूर-दराज़ के गाँवों तक उनका प्रभाव बहुत धीमा पहुंच रहा है। सड़कें अभी भी कच्ची हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं ना के बराबर हैं और रोजगार के विकल्प सीमित हैं। यदि सरकार इन गाँवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने में गंभीरता दिखाए, तो यहाँ का जीवन भी बेहतर हो सकता है।

इन गाँवों में जाकर महसूस होता है कि असली भारत अब भी वहीं बसा है — जहां लोग कम में जीना जानते हैं, देश के लिए जीते हैं और हर सुबह सीमा पर तिरंगे को देखकर अपने होने पर गर्व महसूस करते हैं। जैसलमेर की रेतीली धरती पर बसे ये आखिरी गाँव केवल भौगोलिक बिंदु नहीं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के जीवंत उदाहरण हैं।


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