एक कप चाय और कुछ अधूरी बातें : शहर के कोने से एक कहानी
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
बारिश की कुछ बूँदें, ठंडी हवा, और हाथ में मिट्टी की कुल्हड़ में गर्म चाय...
शहर की भागती-भागती सड़कों के बीच एक कोना ऐसा भी था जहाँ वक्त रुक सा जाता था। कोई घड़ी नहीं चलती थी वहाँ, सिर्फ धुएँ की एक सीधी लकीर और चाय की धीमी चुस्की चलती थी।
वहीं एक पुरानी-सी लकड़ी की बेंच थी, जिस पर रोज़ शाम ठीक 6 बजे एक बुज़ुर्ग आ बैठते। उनका नाम किसी को नहीं पता था, और शायद ज़रूरत भी नहीं थी। उनका आना, एक कप चाय लेना, और फिर दूर कहीं खो जान- ये सब इतना नियमित हो गया था कि जैसे वो उस जगह का हिस्सा बन गए हों।
मैं भी वहीं बैठा करता था, अक्सर अकेला, कभी-कभी अपने साथ कुछ अधूरी बातें लेकर।
वो बुज़ुर्ग और उनकी ख़ामोशी
एक दिन मैंने पूछ ही लिया -
"बाबूजी, रोज़ अकेले क्यों आते हैं?"
उन्होंने मुस्कुरा कर कहा -
"कभी कोई साथ था, अब चाय ही बची है
साथ देने के लिए।"उस एक लाइन ने जैसे पूरा जीवन समेट लिया हो।
मैं चुप हो गया। चाय सस्ती थी, लेकिन वो जवाब अनमोल था।
चाय: एक बहाना, एक साथी, एक कहानी
भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, एक एहसास है।
चाय के बहाने कितनी दोस्तियाँ बनी हैं,
कितने इश्क़ शुरू हुए हैं,
और न जाने कितनी अधूरी बातें धुएँ में उड़ गईं।
हर कुल्हड़ की दीवारों पर कोई ना कोई कहानी चिपकी होती है।
कोई पहली मुलाक़ात,
कोई आखिरी अलविदा,
या फिर वो बातें जो कभी हो ही नहीं पाईं।
शहर की भीड़ में एक कोना जो अपना सा लगता है
4 अरब कप चाय पी जाती है हर दिन भारत मेंआज भी जब उस चाय वाले के पास जाता हूँ,
वो बुज़ुर्ग नहीं आते अब।
किसी ने कहा, उनकी तबीयत बिगड़ गई थी।
कोई बोला — वो अब नहीं रहे।
पर उनके बैठने की जगह अब भी खाली नहीं होती।
वहाँ अब मेरी आदत बैठती है,
और उनकी यादें।
अधूरी बातें कभी खत्म नहीं होतीं
चाय तो ठंडी हो गई थी,
पर कुछ बातें अब भी गर्म हैं-
शायद किसी और शाम के लिए,
या किसी और की कहानी बनने के लिए।
आपकी सबसे यादगार चाय किसके साथ थी?
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ
चाय की दुकानों पर घर के आसपास के लोगों से गपशप करना शायद ही कभी भुलाया जा सके - एक पाठक
जवाब देंहटाएं