एक रिक्शावाले की बेटी बनी IAS
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संघर्ष की मिसालआरती के पिता, रामप्रसाद यादव, एक साधारण रिक्शा चलाने वाले हैं। सुबह से लेकर देर शाम तक पसीना बहाकर जो कुछ भी कमाते थे, उसमें मुश्किल से घर का खर्च चलता था। लेकिन उनके पास एक अमूल्य चीज़ थी — अपनी बेटी के सपनों पर अटूट भरोसा।आरती का बचपन तंगहाली में बीता। घर में न पढ़ने की अच्छी जगह थी, न बिजली का स्थायी इंतज़ाम। वो अक्सर स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करती थी। स्कूल से लौटने के बाद माँ का हाथ बँटाना, छोटे भाई-बहनों की देखभाल और फिर किताबों में डूब जाना — यही उसका रोज़ का रूटीन था।
जब दसवीं कक्षा में उसने अपने शिक्षक से कहा कि वह IAS बनना चाहती है, तो सबने मज़ाक उड़ाया। किसी ने कहा, "इतना बड़ा सपना मत देखो, टूट जाएगा।" मगर उसके पिता ने उसका सिर सहलाते हुए कहा —
"बेटी, अगर तू ठान ले तो तेरा बाप तुझे मंज़िल तक छोड़ कर आएगा — चाहे पैदल ही क्यों न जाना पड़े!"आरती ने छात्रवृत्ति के सहारे ग्रेजुएशन किया। दिन में कॉलेज, शाम को ट्यूशन पढ़ाकर घर चलाने में मदद और रात भर किताबों में डूब जाना — यही उसकी ज़िंदगी बन गई थी। UPSC की तैयारी के लिए उसने दिल्ली का रुख किया, लेकिन पैसे नहीं थे।तब उसके पिता ने अपनी जमा-पूँजी का रिक्शा भी गिरवी रख दिया। बोले,"बेटी को ऊँचा उड़ना है, रिक्शा फिर आ जाएगा!"
तीन साल तक कठिन परिश्रम, असफलता, और आंसुओं की अनगिनत रातों के बाद, आखिरकार साल 2024 में आरती ने UPSC की परीक्षा पास की और पूरे देश में 47वीं रैंक लाकर IAS अधिकारी बनी।जब रिजल्ट आया, पूरा गाँव झूम उठा। वो झोपड़ी जहाँ आरती कभी स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ती थी, आज वहाँ लोग उसे देखने आते हैं। उसके पिता, जो कभी दूसरों के बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते थे, अब गर्व से कहते हैं — "मेरी बेटी आज अफसर बन गई!"
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