छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे, लेकिन उनकी ठुमरी हमेशा गूंजती रहेगी
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हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत जगत के अनमोल रत्न, पद्मश्री पंडित छन्नूलाल मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन की खबर ने संगीतप्रेमियों, शिष्यों और पूरे सांस्कृतिक समाज को गहरे शोक में डुबो दिया है। भोजपुरी, ठुमरी और बनारस घराने की परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले इस महान गायक की कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकेगा।
छन्नूलाल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस (वाराणसी) के समीप एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनका जीवन साधारण नहीं था। बचपन से ही उन्हें संगीत में रुचि थी और उन्होंने बनारस घराने की गायकी को अपनाया। उनकी आवाज़ में वह मिठास, गहराई और आध्यात्मिकता थी जो श्रोताओं को सीधे आत्मा से जोड़ देती थी।
उन्होंने खयाल, ठुमरी, भजन, चैती, कजरी और विशेषकर भोजपुरी लोकगीतों को एक नई ऊँचाई दी। वे उन कुछ चुनिंदा गायकों में से थे, जिन्होंने शास्त्रीयता के दायरे में रहकर लोकभाषा में भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति को संभव किया।
भारत सरकार ने छन्नूलाल मिश्र को 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किया, जो उनके संगीत में उत्कृष्ट योगदान का सरकारी स्तर पर सम्मान था। उन्होंने न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम लहराया। अमेरिका, यूरोप, और खाड़ी देशों में उन्होंने भारतीय संस्कृति की खुशबू को स्वर के माध्यम से फैलाया।
पंडित जी का संगीत बनारस की मिट्टी, गंगा की धारा और मंदिरों की घंटियों जैसी अनुभूति कराता था। उनका गाना केवल एक
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