समय में थमा हुआ शहर चेत्तिनाड,जहाँ हवेलियाँ बोलती हैं

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  Chettinad a timeless town दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित चेत्तिनाड एक ऐसा क्षेत्र है जिसने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई है। यह क्षेत्र नागरथर या चेत्तियार समुदाय का पारंपरिक घर माना जाता है। नागरथर समुदाय अपनी व्यापारिक समझ, उदार दानशीलता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। सदियों पहले जब भारत व्यापार के केंद्रों में से एक था, तब इस समुदाय ने बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में व्यापार का विशाल नेटवर्क स्थापित किया। इस वैश्विक दृष्टि और संगठन ने चेत्तिनाड को समृद्धि और पहचान दिलाई। भव्य हवेलियों में झलकती समृद्धि चेत्तिनाड की सबसे प्रभावशाली पहचान इसकी भव्य हवेलियों में झलकती है। इन हवेलियों का निर्माण उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के बीच हुआ था, जब नागरथर व्यापारी वर्ग अपने स्वर्ण काल में था। बर्मी टीक की लकड़ी, इटली की टाइलें और यूरोपीय संगमरमर से सजे ये घर भारतीय पारंपरिक वास्तुकला और विदेशी प्रभाव का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। विशाल आंगन, नक्काशीदार दरवाजे और कलात्मक खिड़कियाँ इन हवेलियों को एक अलग ही भव्यता प्रदान करती हैं। ...

छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे, लेकिन उनकी ठुमरी हमेशा गूंजती रहेगी





हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत जगत के अनमोल रत्न, पद्मश्री पंडित छन्नूलाल मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन की खबर ने संगीतप्रेमियों, शिष्यों और पूरे सांस्कृतिक समाज को गहरे शोक में डुबो दिया है। भोजपुरी, ठुमरी और बनारस घराने की परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले इस महान गायक की कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकेगा।

छन्नूलाल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस (वाराणसी) के समीप एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनका जीवन साधारण नहीं था। बचपन से ही उन्हें संगीत में रुचि थी और उन्होंने बनारस घराने की गायकी को अपनाया। उनकी आवाज़ में वह मिठास, गहराई और आध्यात्मिकता थी जो श्रोताओं को सीधे आत्मा से जोड़ देती थी।

उन्होंने खयाल, ठुमरी, भजन, चैती, कजरी और विशेषकर भोजपुरी लोकगीतों को एक नई ऊँचाई दी। वे उन कुछ चुनिंदा गायकों में से थे, जिन्होंने शास्त्रीयता के दायरे में रहकर लोकभाषा में भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति को संभव किया।

भारत सरकार ने छन्नूलाल मिश्र को 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किया, जो उनके संगीत में उत्कृष्ट योगदान का सरकारी स्तर पर सम्मान था। उन्होंने न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम लहराया। अमेरिका, यूरोप, और खाड़ी देशों में उन्होंने भारतीय संस्कृति की खुशबू को स्वर के माध्यम से फैलाया।



पंडित जी का संगीत बनारस की मिट्टी, गंगा की धारा और मंदिरों की घंटियों जैसी अनुभूति कराता था। उनका गाना केवल एक

































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