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लद्दाख की अनोखी विवाह प्रणाली: परंपरा और आधुनिकता का संगम

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अनोखी विवाह प्रणाली भारत के उत्तर में स्थित लद्दाख अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ठंडे मौसम और बौद्ध संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन यहाँ की एक और खास बात है -इसकी विवाह प्रणाली। लद्दाख में शादी केवल दो लोगों का मिलन नहीं होती, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव की तरह मनाई जाती है। पारंपरिक रीति-रिवाज़, पारिवारिक निर्णय और समुदाय की भागीदारी इस प्रथा को और भी अनोखा बना देती है।  पारंपरिक ‘अरेंज मैरिज’ की प्रथा लद्दाख में शादी प्रायः अरेंज मैरिज यानी पारिवारिक तय की गई शादियों के रूप में होती है। विवाह के लिए वर और वधू के परिवार आपस में बैठकर निर्णय लेते हैं। कई बार बच्चे की शादी का प्रस्ताव बचपन में ही तय कर दिया जाता है। वर और वधू की राशि, परिवार की स्थिति और समाज में प्रतिष्ठा को ध्यान में रखा जाता है। शादी की तारीख ज्योतिष के अनुसार निकाली जाती है और इसे बहुत शुभ अवसर माना जाता है। विशेष बात– लद्दाख में शादी से पहले दोनों परिवारों के बीच आपसी सम्मान और

राज्य: एक आवश्यक बुराई – हर्बर्ट स्पेंसर का दृष्टिकोण

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प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक  हरबर्ट स्पेंसर राज्य एक आवश्यक बुराई है — यह विचार गहरे राजनीतिक और दार्शनिक विमर्श का हिस्सा रहा है। यह कथन प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) से जुड़ा है, जिन्होंने राज्य की भूमिका पर कई क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए। वे मानते थे कि राज्य का अस्तित्व इसलिए है क्योंकि मनुष्य स्वयं अपने नैतिक दायित्वों का पालन नहीं करता। अगर समाज में सभी व्यक्ति आत्म-नियंत्रण, न्याय और पारस्परिक सहयोग से कार्य करें, तो राज्य की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। हरबर्ट स्पेंसर जैसे चिंतकों के अनुसार, राज्य का निर्माण मानव समाज की कमजोरियों को संतुलित करने के लिए हुआ है। यह व्यवस्था समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी तो है, लेकिन यह हमेशा स्वतंत्रता पर नियंत्रण भी लगाता  सीलिए इसे "आवश्यक बुराई" कहा गया है — ऐसी बुराई जो न हो तो अराजकता फैले, और हो तो स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। ऐसे कई विचारक रहे हैं जिन्होंने राज्य की सीमाओं और उसकी अनिवार्यता को लेकर सवाल उठाए। थॉमस पेन (Thomas Paine) , एक और विख्यात विचारक, ने भी कहा था  कि ...

नरेंद्र मोदी रोज़ कितनी नींद लेते हैं? ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे

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 नरेंद्र मोदी और उनकी कम नींद की आदत: एक दृष्टिकोण भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल देश के सबसे चर्चित नेताओं में से एक हैं, बल्कि उनकी मेहनत और समर्पण के लिए भी जाने जाते हैं। उनका दिन बेहद व्यस्त होता है, लेकिन इसके बावजूद वह अक्सर केवल 4-5 घंटे की नींद लेकर भी पूरी ऊर्जा के साथ काम करते हैं। उनकी यह कम नींद की आदत उनके कठोर परिश्रम, अनुशासन और आत्म-संयम का प्रमाण है।  मोदी की दिनचर्या और नींद का महत्व नरेंद्र मोदी की दिनचर्या बहुत ही सख्त और अनुशासित है। वे सुबह बहुत जल्दी उठते हैं, आमतौर पर 4 बजे से पहले। उनकी शुरुआत योग और ध्यान से होती है, जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। योग से वे दिनभर की थकान को दूर करते हैं और अपने मन को शांत रखते हैं। नींद की कमी के बावजूद, मोदी जी अपनी ऊर्जा बनाए रखने के लिए पौष्टिक आहार और नियमित व्यायाम करते हैं। वे अक्सर छोटे ब्रेक लेकर अपने दिन को संतुलित करते हैं, ताकि उनकी कार्यक्षमता में कमी न आए। उनके सहयोगी बताते हैं कि वे अपने काम में इतने लीन रहते हैं कि नींद की कमी उनके काम पर ज्यादा असर नहीं डालती। ...

जहाँ तर्क और कल्पना मिले — वहाँ था अफलातून

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  जब हम ज्ञान, तर्क और विचारों की बात करते हैं, तो इतिहास में कुछ नाम अमर हो जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है – अफलातून । आज हम उसके बारे में जानेंगे, न केवल एक विद्वान के रूप में, बल्कि एक सोच के रूप में, एक चेतना के रूप में। अफलातून प्राचीन यूनान का महान दार्शनिक था। वह सुकरात का शिष्य और अरस्तु का गुरु था। लेकिन केवल यह कहना पर्याप्त नहीं है। उसका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उसने मनुष्य के सोचने के तरीके को ही बदल दिया। उसने जीवन, समाज, राजनीति, न्याय और आत्मा जैसे विषयों पर गहराई से विचार किया। उसका मानना था कि इस दुनिया की हर चीज़ एक "आदर्श रूप" या "आदर्श विचार" के आधार पर बनी है। उसका यह सिद्धांत आज भी दर्शनशास्त्र के सबसे जटिल और गूढ़ विषयों में से एक माना जाता है। अफलातून का मानना था कि सच्चा ज्ञान केवल अनुभव से नहीं, बल्कि चिंतन और मनन से प्राप्त होता है। उसने एक कल्पना की – एक आदर्श राज्य की, जहाँ राजा एक दार्शनिक हो। उसके अनुसार, जब तक दार्शनिक राजा नहीं बनेंगे या राजा दार्शनिक नहीं होंगे, तब तक समाज में न्याय नहीं आ सकता। वह केवल किताबों में सीमित नहीं था, उ...

फटी जींस: एक फैशन ट्रेंड या सांस्कृतिक विद्रोह ?

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  आज के समय में फटी जींस (Ripped Jeans) युवाओं के बीच एक आम फैशन ट्रेंड बन चुका है। कॉलेज जाने वाले छात्र-छात्राएं हों, सड़कों पर घूमते युवक हों, या फिर सोशल मीडिया पर सक्रिय इन्फ्लुएंसर — हर कोई फटी जींस को एक स्टाइल स्टेटमेंट मानता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस तरह की जींस पहनने का प्रचलन आखिर शुरू कहाँ से हुआ? फटी जींस की शुरुआत एक फैशन ट्रेंड के रूप में नहीं, बल्कि एक विद्रोही सोच के रूप में हुई थी। 1970 के दशक में अमेरिका और यूरोप में पंक मूवमेंट (Punk Movement) चल रहा था। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन था जो पारंपरिक सोच, सामाजिक व्यवस्था और राजनीतिक ढांचे के खिलाफ आवाज उठा रहा था। पंक संस्कृति के अनुयायी कपड़ों से भी अपने विद्रोह को व्यक्त करते थे। फटी हुई, कांटे-तार से जुड़ी, या चुभने वाले डिजाइन वाली जींस पहनना इसी सोच का हिस्सा था। यह उनके अंदर मौजूद असंतोष और विरोध की भावना का प्रतीक बन गया। 1980 और 1990 के दशक में जब यह स्टाइल मुख्यधारा में आया, तो फैशन ब्रांड्स ने इस विद्रोही पहनावे को एक स्टाइलिश आइटम में बदल दिया। रॉक स्टार्स और सेलेब्रिटीज जैसे कि कर्ट क...

स्विट्ज़रलैंड – एक ऐसी जगह जिसे देख हर कोई कहे ‘ये स्वर्ग है’!

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दुनिया की पहली फोटो की कहानी भी पढ़ें   जब भी धरती पर स्वर्ग की कल्पना की जाती है, तो सबसे पहले एक ही देश का नाम मन में आता है – स्विट्ज़रलैंड। इसकी अद्भुत प्राकृतिक छटा, बर्फ से ढके पहाड़, हरे-भरे मैदान और नीली झीलें मानो किसी चित्रकार की कल्पना हों। तो आइए जानते हैं कि स्विट्ज़रलैंड को 'दुनिया का स्वर्ग' क्यों कहा जाता है।स्विट्ज़रलैंड की सबसे बड़ी विशेषता इसकी अनुपम प्राकृतिक छटा है

दुनिया की पहली फोटो की कहानी

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एक कप चाय और कुछ अधूरी बातें   जानिए कैसे जोसेफ नाइसफोर निएप्स ने 1826 में इतिहास की पहली फोटो ली ( दुनिया की पहली फोटो ) 1826 की एक फ्रांस की दोपहर में, जोसेफ नाइसफोर निएप्स नाम के एक वैज्ञानिक ने इतिहास की पहली तस्वीर कैद की। उस वक्त कैमरे आज जैसे नहीं थे, बल्कि एक बड़ा लकड़ी का डिवाइस था जिसमें बिटुमेन नामक केमिकल लगी एक प्लेट थी। उन्होंने अपने घर की खिड़की से बाहर का दृश्य उस प्लेट पर कैमरा ऑब्स्क्यूरा की मदद से कैद किया। इस प्रक्रिया में सूरज की रोशनी लगभग 8 घंटे तक लगी रही। धीरे-धीरे एक धुंधली सी परछाई प्लेट पर उभरने लगी, जो दुनिया की पहली तस्वीर बनी। इसे “View from the Window at Le Gras” कहा जाता है। जोसेफ निएप्स को उस वक्त शायद पता नहीं था कि उनके इस छोटे प्रयोग से पूरी दुनिया की यादें कैद करने का रास्ता खुल जाएगा। इस तस्वीर ने फोटोग्राफी की नींव रखी, जो आगे चलकर मोबाइल कैमरे और डिजिटल फोटोग्राफी तक पहुंची। यह तस्वीर आज भी University of Texas में सुरक्षित रखी गई है और निएप्स को “Father of Photography” कहा जाता है। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बड़ी खोजें अक्सर छोटे कद...