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जानिए दुनिया के किन-किन देशों में मनाई जाती है दीवाली

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Read Also:लद्दाख की अनोखी विवाह प्रणाली: परंपरा और आधुनिकता का संगम   सिंगापुर में दीपावली  क्या आप जानते हैं कि दीवाली सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी धूमधाम से मनाई जाती है? जहाँ-जहाँ भारतीय समुदाय बसा है, वहाँ यह पर्व एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है। पड़ोसी देशों में दीवाली का महत्व भारत के पड़ोसी देश नेपाल में दीवाली को ‘तिहार’ कहा जाता है। यह पाँच दिन तक चलने वाला पर्व है जिसमें लक्ष्मी पूजन के साथ पशु-पक्षियों और भाई-बहन के रिश्तों का सम्मान किया जाता है। श्रीलंका में यह त्योहार तमिल हिंदू समुदाय में विशेष रूप से मनाया जाता है। लोग मंदिरों में पूजा करते हैं, घर सजाते हैं और पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं। दोनों ही देशों में दीवाली को धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व के रूप में गहरा महत्व दिया जाता है।  एशिया और कैरेबियन देशों में दीपावली उत्सव मलेशिया और सिंगापुर में दीपावली एक सरकारी अवकाश होता है। लोग अपने घरों को रंगोली और लाइटों से सजाते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। त्रिनिदाद एंड टोबैगो और फ़िजी में भी दीवाली बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। यहाँ य...

क्या आपने सुना है? भारत का सबसे ऊँचा डाकघर जहां बर्फ और ठंड के बीच चलती है डाक सेवा

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एक अन्य पोस्ट ग्वालियर महाराजा की ट्रेन की कहानी भी पढ़ें भारत में डाक सेवाएँ सिर्फ शहरों और गाँवों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि देश के सबसे दुर्गम और ऊँचे इलाकों तक भी पहुँचती हैं। इनमें से एक खास और दिलचस्प उदाहरण है भारत का सबसे ऊँचा डाकघर, जो हिमालय की बर्फीली चोटियों पर स्थित है। डाकघर की विशेषता और स्थान यह डाकघर उत्तराखंड के चमोली जिले के गंगोत्री क्षेत्र में स्थित है, जो समुद्र तल से लगभग 13,500 फीट (लगभग 4,115 मीटर) की ऊँचाई पर है। इसे अक्सर “गंगोत्री डाकघर” के नाम से जाना जाता है। यह डाकघर न केवल ऊँचाई में सबसे ऊपर है, बल्कि यह एक चुनौतीपूर्ण इलाके में स्थित है, जहाँ ठंड, बर्फ़बारी और जंगली रास्ते आम हैं। यहाँ क्यों खास है यह डाकघर? प्राकृतिक कठिनाइयाँ: इतनी ऊँचाई पर काम करना और डाक सेवाएँ प्रदान करना आसान नहीं होता। मौसम की अस्थिरता, कम ऑक्सीजन, और भौगोलिक बाधाएँ यहां की दिनचर्या का हिस्सा हैं। सेवा का समर्पण: डाक कर्मचारियों की मेहनत और समर्पण को सलाम करना चाहिए, जो हर दिन इस चुनौतीपूर्ण मार्ग से गुजरकर डाक सामग्री को सुरक्षित पहुंचाते हैं। पर्यटक आकर्षण: यह डाकघर पर्यटकों और...

"नवरात्रि की रात्रि, गरबा के साथ"

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         भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर त्योहार को दिल से मनाया जाता है। इन्हीं त्योहारों में से एक है नवरात्रि, और नवरात्रि में गरबा की बात न हो, तो त्योहार अधूरा लगता है। गरबा सिर्फ एक नृत्य नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है जो लोगों को एक सूत्र में बाँधता है। गरबा की उत्पत्ति और महत्व गरबा की शुरुआत गुजरात से मानी जाती है, लेकिन आज इसकी लोकप्रियता पूरे भारत ही नहीं, दुनियाभर में फैल चुकी है।                  "गरबा" शब्द संस्कृत के "गर्भ" शब्द से आया है, जिसका अर्थ है जीवन या सृजन। यह देवी दुर्गा की उपासना का एक माध्यम है जिसमें दीप (दीया) को एक मिट्टी के पात्र (गरबा) में रखकर पूजा की जाती है। कैसे मनाया जाता है गरबा नवरात्रि के नौ दिनों में हर शाम को लोग रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर गरबा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। महिलाएं घाघरा-चोली और पुरुष केडिया पहनते हैं।                   डांडिया और गरबा के ताल पर कदम मिलाकर लोग देर रात तक नाचते ...

क्या भूटान के लोग दुनिया में सबसे अधिक खुश हैं, क्या यह पूरी तरह से सही है ?

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एक अन्य स्टोरी ,जैसलमेर की सरहद पर ज़िंदगी: आखिरी गाँव की कहानी भी पढ़ें   (GNH) मॉडल और भूटानी जीवनशैली का रहस्य जब भी "सबसे खुशहाल देश" की बात होती है, तो भूटान का नाम ज़रूर लिया जाता है। यह छोटा हिमालयी देश अपने अनोखे विकास मॉडल "ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस" (GNH) के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन क्या वाकई में भूटानी लोग दुनिया के सबसे खुशहाल लोग हैं? आइए जानते हैं।  भूटान का ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस मॉडल भूटान ने 1970 के दशक में यह घोषित किया कि देश का विकास केवल GDP (Gross Domestic Product) से नहीं मापा जाएगा, बल्कि Gross National Happiness से होगा। इस मॉडल में 9 मुख्य स्तंभ होते हैं: 1. मानसिक सुख-शांति 2. स्वास्थ्य 3. शिक्षा 4. अच्छे प्रशासन 5. सांस्कृतिक संरक्षण 6. पारिस्थितिक संतुलन 7. समय का सदुपयोग 8. समुदाय की जीवन शक्ति 9. जीवन स्तर इस मॉडल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विकास लोगों के जीवन में असली खुशियाँ और संतुलन लाए। क्या भूटान वाकई सबसे खुश देश है? हालाँकि भूटान का GNH मॉडल सराहनीय है, लेकिन **World Happiness Report** जैसे वैश्विक रिपोर्टों में भूटान टॉप 10 द...

वर्क फ्रॉम होम: कामयाबी की चाबी या रिश्तों में दूरी?

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  वर्क फ्रॉम होम: एक नई कार्य संस्कृति की ओर कदम कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया भर में कार्यशैली में बड़ा बदलाव आया है। "वर्क फ्रॉम होम" यानी घर से काम करना, एक अस्थायी उपाय से निकलकर एक स्थायी विकल्प बन गया है। इससे कई लोगों को करियर में लचीलापन, समय की बचत और पारिवारिक जीवन के साथ संतुलन बनाने का मौका मिला। पिछले कुछ वर्षों में "वर्क फ्रॉम होम" यानी "घर से काम करना" एक आम शब्द बन गया है। महामारी के दौर में जहाँ यह एक ज़रूरत बन गया था, वहीं अब यह एक स्थायी विकल्प के रूप में उभर रहा है। इसने न सिर्फ काम करने के तरीके को बदला है, बल्कि जीवनशैली और कार्य संतुलन (work-life balance) पर भी गहरा प्रभाव डाला है। वर्क फ्रॉम होम के लाभ समय की बचत : ऑफिस आने-जाने में लगने वाला समय बचता है जिससे कर्मचारी अपने समय का बेहतर उपयोग कर पाते हैं। लचीलापन (Flexibility) : कर्मचारी अपने समय के अनुसार काम कर सकते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ती है। परिवार के साथ समय : वर्क फ्रॉम होम के कारण लोग अपने परिवार के साथ ज़्यादा समय बिता पा रहे हैं। खर्चों में कमी : यात्...

भारतीय माता-पिता बच्चों को विदेश पढ़ाई के लिए क्यों भेजते हैं? जानिए इसके पीछे की सच्चाई

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संयुक्त परिवार : भारत की एक खोती हुई परंपरा को भी पढ़ें                            विदेश में पढ़ाई: सपना या सिर्फ एक भ्रम?     भारत में लाखों माता-पिता अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। ये फैसला सिर्फ एक सपने के लिए नहीं, बल्कि एक *संकट* के लिए भी होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फैसले के पीछे छुपी होती है एक बड़ी सच्चाई, जो अक्सर कोई बताने की हिम्मत नहीं करता? बेहतर शिक्षा” या सिर्फ एक बड़ा भ्रम? माता-पिता सोचते हैं कि विदेश की डिग्री अपने आप बच्चों का भविष्य बना देगी। लेकिन क्या हर विदेशी विश्वविद्यालय वाकई में इतना बेहतरीन होता है? कई बार महंगे कोर्स सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं, जहां बच्चों को स्थानीय भाषा, संस्कृति, और रोजगार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। क्या आप जानते हैं? बहुत से छात्र विदेश में अकेलेपन, आर्थिक तनाव और मानसिक दबाव से जूझते हैं, और ये खर्च परिवार पर एक बड़ा आर्थिक बोझ बन जाता है। सपनों का दबाव या समाज का दबाव? भारत में समाज और परिवार ...

एक छोटी सी कहानी है जो "Gen Z" और म्यूज़ियम से जुड़ी है,जानें कैसे ?

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                  कहानी: "पुराने वक़्त की खुशबू" आरव, एक 17 साल का लड़का, जिसे स्मार्टफोन, वीडियो गेम और सोशल मीडिया की दुनिया से फुर्सत ही नहीं मिलती थी। एक दिन उसकी दादी ने कहा, "चलो आरव, आज तुम्हें एक जगह लेकर चलती हूँ जहाँ असली इतिहास बसता है।" आरव ने आँखें मटकाई, "दादी! फिर से कोई पुराना म्यूज़ियम? वहाँ तो सब बोरिंग होता है!" लेकिन दादी की जिद के आगे उसकी एक न चली। वे दोनों शहर के पुराने इतिहास संग्रहालय पहुँचे। आरव ऊबता हुआ सा उनके पीछे-पीछे चल रहा था। पर जब वह वहाँ पहुँचा, तो एक सेक्शन ने उसका ध्यान खींचा — "भारत की स्वतंत्रता संग्राम के नायक"। वहाँ नेताजी सुभाष चंद्र बोस की असली वर्दी, गांधी जी का चश्मा और झाँसी की रानी की तलवार रखी थी। आरव पहली बार रुका। उसने पूछा, "दादी, क्या ये सब सच में असली है?" दादी मुस्कुराईं, "हाँ बेटा, ये सब उस दौर की निशानियाँ हैं। तुम्हारे गेम्स में जो 'हीरोज़' होते हैं, उनसे कहीं ज़्यादा असली और बहादुर।" आरव ने पहली बार म्यूज़ियम को एक नई नजर से देखा — न सिर्फ़ इतिहास की ...

संयुक्त परिवार : भारत की एक खोती हुई परंपरा , कारण क्या ?

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भारतीय माता-पिता बच्चों को विदेश पढ़ाई के लिए क्यों भेजते हैं? को भी पढ़ें भारत की सांस्कृतिक विरासत में संयुक्त परिवार प्रणाली की जो भूमिका रही है, वह न केवल सामाजिक ढांचे की नींव रही है, बल्कि यह एक गहरे भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव का भी प्रतीक रही है। पहले जहाँ परिवार के कई सदस्य—दादा-दादी, चाचा-ताऊ, माँ-बाप, बच्चे एक ही छत के नीचे रहते थे, वहाँ सभी के बीच सहयोग, समझदारी और सम्मान की भावना होती थी। इस व्यवस्था ने बच्चों को संस्कार देने, बुजुर्गों को सम्मान देने और पारिवारिक जिम्मेदारियों को साझा करने का एक सुगठित तरीका प्रदान किया। लेकिन आज की बदलती दुनिया में, तेज़ी से बदलती जीवनशैली, आर्थिक आवश्यकताएँ और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बढ़ती चाह ने इस परंपरा को धीरे-धीरे कमजोर कर दिया है। लोग बड़े शहरों में अलग-अलग नौकरी और शिक्षा के लिए जाते हैं, जहाँ छोटे परिवार को प्राथमिकता मिलती है क्योंकि वहां एकल परिवार को चलाना आसान होता है। इसके अलावा, आधुनिक पीढ़ी के लिए स्वतंत्रता और निजी जीवन बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, इसलिए वे परिवार के बड़े गठबंधन में नहीं रहना चाहते। इसके अलावा, महिलाओं क...

हरियाली हमारी धरती का आभूषण और जीवन की असली सांस

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  हरियाली: जीवन का वास्तविक सौंदर्य परिचय हरियाली केवल पेड़-पौधों का नाम नहीं है, बल्कि यह हमारी धरती का आभूषण और जीवन की असली सांस है। जब चारों ओर हिट फिल्में होती हैं, तो पर्यावरण शुद्ध, मन आकर्षण और आत्मा शांति होती है। यह केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक नहीं है बल्कि हमारी भावना का आधार भी है। हरियाली का महत्व क्लीन एयर का स्रोत - ट्री कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, जो हमारे जीवन के लिए सबसे अधिक पाया जाता है। जल संतुलन बनाए रखना - हरित क्षेत्र में वर्षा को आकर्षित करना और भूजल स्तर को बनाए रखना सहायक होता है। जलवायु नियंत्रण - घने जंगलों और हरियाली में गर्मी को कम करके वातावरण को बढ़ावा मिलता है। स्वास्थ्य लाभ - हरे-भरे स्थान मानसिक शांति, तनाव कम करने और सकारात्मक ऊर्जा देने में मदद करते हैं।                                                                          ...

मोबाइल फोन: जरूरत या दीवानगी?

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 एक समय था जब मोबाइल फोन सिर्फ कॉल करने का ज़रिया था। मोबाइल फोन ने हमारी ज़िंदगी को पहले से ज्यादा आसान बना दिया है — चाहे बात हो अपनों से जुड़ने की, जानकारी पाने की, या मनोरंजन की। लेकिन जैसे-जैसे इसकी उपयोगिता बढ़ी है, वैसे-वैसे लोगों में इसके प्रति अत्यधिक लगाव यानी लत भी बढ़ी है। अब सवाल उठता है — क्या मोबाइल अब सिर्फ एक सुविधा है, या यह हमें धीरे-धीरे अपने बस में कर रहा है? हर पल, हर जगह — मोबाइल साथ चाहिए सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले मोबाइल।रात सोते समय आखिरी चीज़ — मोबाइल। रास्ते में चलना हो या बस में सफर,दोस्तों से मिलना हो या खाने की टेबल पर बैठना   हर जगह मोबाइल साथ है — और मन उसी में उलझा हुआ। मोबाइल अब एक सहारा नहीं, बल्कि एक आदत बन चुका है — और आदत जब हद से गुजर जाए, तो वो दीवानगी बन जाती है। मानसिक असर — खोखली होती जा रही है एकाग्रता मोबाइल फोन की लत का सबसे बड़ा असर हमारे मन और मस्तिष्क पर पड़ रहा है: बार-बार नोटिफिकेशन चेक करने की आदत ने लोगों की एकाग्रता खत्म कर दी है। ज्यादा स्क्रीन टाइम के कारण नींद की कमी,आंखों में जलन और तनाव आम हो गया है। बच्चों का खेल-कू...