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भारत में टीवी लंबे समय से मनोरंजन का मुख्य स्रोत रहा है, लेकिन अब यह कई लोगों के लिए आदत से बढ़कर एक निर्भरता बन चुका है। खासतौर पर महानगरों से लेकर छोटे कस्बों तक, हर जगह ऐसा देखने को मिलता है कि टीवी घंटों तक चलता रहता है, चाहे कोई उसे देख रहा हो या नहीं। यह धीरे-धीरे एक ऐसी आदत बन जाती है जो दिनचर्या, मानसिक स्वास्थ्य, रिश्तों और शारीरिक गतिविधि को प्रभावित करती है।
भारत में टीवी की लत बढ़ने का एक बड़ा कारण यह है कि यह सस्ता और बेहद आसान मनोरंजन है। केबल और DTH की कम कीमतों ने हर घर में अनगिनत चैनलों की पहुंच बना दी है। बहुत से परिवारों में सुबह की शुरुआत टीवी से होती है और रात की नींद भी उसी के साथ पूरी होती है। भारतीय परिवारों में एक तरह का “टीवी-सेंट्रिक” कल्चर बन गया है जिसमें खाना खाते हुए, आराम करते हुए, यहां तक कि बच्चों की पढ़ाई के समय भी टीवी चालू रहता है। लगातार ड्रामों, रियलिटी शोज़ और न्यूज़ की आवाजें इस आदत को और गहराई देती हैं।
टीवी सीरियल्स में जो भावनात्मक खेल चलता है, वह लोगों को अगले एपिसोड की उत्सुकता में डाले रखता है। इसी तरह रियलिटी शो का मनोरंजन आकर्षण पैदा करता है। कई बार लोग खाली समय, तनाव
या अकेलेपन को भरने के लिए भी टीवी का सहारा लेते हैं, जिससे यह केवल मनोरंजन की चीज़ नहीं बल्कि एक भावनात्मक सहारा बन जाता है।इस आदत के प्रभाव गंभीर होते हैं। मानसिक रूप से लगातार टीवी देखने से ध्यान कम होता है, चिड़चिड़ापन बढ़ता है और नींद की गुणवत्ता गिरती है। बच्चों में यह प्रभाव और भी अधिक देखा जाता है। टीवी के अत्यधिक प्रयोग से उनकी रचनात्मकता कम होती है, पढ़ाई प्रभावित होती है और गलत या हिंसक कंटेंट से व्यवहार में बदलाव आ सकता है। परिवार के रिश्तों पर भी असर पड़ता है, क्योंकि बातचीत की जगह टीवी ले लेता है। शारीरिक स्तर पर भी समस्याएँ सामने आती हैं—जैसे मोटापा, सिरदर्द, आंखों में जलन, और शारीरिक गतिविधि में कमी।
दिल्ली की एक गृहणी, जिनका नाम हम नीता मान लेते हैं, टीवी लत का एक वास्तविक उदाहरण हैं। उनका पूरा दिन कभी न खत्म होने वाले सीरियल्स और रियलिटी शो में गुजरता था। धीरे-धीरे उनके बच्चों की पढ़ाई कमजोर होने लगी, घर में तनाव बढ़ा और नीता खुद भी अस्वस्थ महसूस करने लगीं। बाद में जब उन्होंने टीवी देखने का समय सीमित किया और परिवार के साथ समय बिताना शुरू किया, तो कुछ ही हफ्तों में माहौल बदलने लगा। इससे पता चलता है कि टीवी की लत छोटे-से छोटे परिवारिक संतुलन पर भी बड़ा असर डालती है।
टीवी की आदत को कम करने के लिए सबसे कारगर तरीका यह है कि देखने का समय निश्चित कर लिया जाए। दिन में एक तय समय रखें और उसी में सीमित रहें। टीवी को ऐसे कमरे से हटाना जहां ज्यादा समय बिताया जाता हो, भी काफी मददगार होता है। खाने की जगह या बच्चों के स्टडी एरिया में टीवी बिल्कुल नहीं होना चाहिए। घर में ऐसी गतिविधियाँ शुरू की जा सकती हैं जो टीवी की जगह लें—जैसे छोटी सैर, पढ़ना, कहानी सुनना, परिवारिक बातचीत, या कोई नया शौक अपनाना। यह न केवल टीवी कम करता है बल्कि घर के माहौल को भी बेहतर बनाता है।
अगर किसी को टीवी पूरी तरह छोड़ना मुश्किल लगता है, तो एक छोटा-सा 30-दिन का “टीवी डिटॉक्स चैलेंज” किया जा सकता है। इसमें रोज़मर्रा के टीवी समय को धीरे-धीरे आधा किया जाता है और उसकी जगह ऐसी गतिविधियों को शामिल किया जाता है जो मन और शरीर दोनों के लिए बेहतर हों। ज्यादातर लोग 15–20 दिनों के भीतर स्पष्ट बदलाव महसूस करने लगते हैं।
टीवी खुद में बुरा नहीं है, लेकिन उसकी लत निश्चित रूप से जीवन की गुणवत्ता को कम करती है। भारत में बढ़ती टीवी निर्भरता एक वास्तविक सामाजिक मुद्दा बन चुकी है, पर थोड़े से अनुशासन और स्मार्ट बदलावों की मदद से इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। संतुलित टीवी उपयोग न सिर्फ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि परिवारिक रिश्तों को भी मजबूत करता है।
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