लाहौल-स्पीति: बर्फ़ीली वादियों का अनकहा सौंदर्य
अमेरिका लंबे समय से भारतीय आईटी और तकनीकी पेशेवरों के लिए अवसरों की धरती माना जाता रहा है। हर साल हजारों भारतीय युवा बेहतर करियर और जीवन के सपनों के साथ एच-1बी वीज़ा पर वहां जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इन सपनों पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।
एच-1बी वीज़ा की नीति में लगातार हो रहे बदलाव, आवेदन प्रक्रिया की जटिलता और ग्रीन कार्ड की लंबी प्रतीक्षा ने भारतीयों के जीवन को कठिन बना दिया है। खासकर उन परिवारों के लिए, जिनके बच्चे अमेरिका में पले-बढ़े हैं लेकिन कानूनी स्थिति अब भी अस्थायी है।
वर्तमान में अमेरिकी कंपनियाँ लागत कम करने और “लोकल हायरिंग” पर ज़ोर दे रही हैं, जिससे एच-1बी वीज़ा धारकों के अवसर सीमित हो रहे हैं। इसके अलावा, वीज़ा नवीनीकरण की प्रक्रिया भी पहले से अधिक सख्त हो गई है। कई पेशेवर, जो वर्षों से अमेरिका में काम कर रहे हैं, अब भविष्य को लेकर असमंजस में हैं।
भारत सरकार भी इस विषय पर अमेरिका के साथ वार्ता में सक्रिय है, लेकिन व्यवहारिक समाधान अभी दूर नज़र आता है। नतीजा यह है कि भारतीय पेशेवरों का एक बड़ा वर्ग अब वैकल्पिक देशों जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप की ओर रुख कर रहा है।
एच-1बी वीज़ा का उद्देश्य दुनिया भर से प्रतिभाशाली लोगों को अमेरिका में अवसर देना था, पर अब यह नीति कई लोगों के लिए एक “संकट” बन गई है। सवाल यह है कि क्या अमेरिका अपने आर्थिक हितों और मानव संसाधन के बीच सही संतुलन बना पाएगा, या फिर यह वीज़ा प्रणाली भारतीयों के सपनों को अधूरा छोड़ देगी?
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