लाहौल-स्पीति: बर्फ़ीली वादियों का अनकहा सौंदर्य
रघु राय का जन्म 1942 में झंग (अब पाकिस्तान में) हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार दिल्ली आ गया।
शुरू में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन बड़े भाई एस. पॉल ने उन्हें फोटोग्राफी अपनाने के लिए प्रेरित किया। 1966 में रघु राय ने The Statesman अखबार में बतौर फोटोजर्नलिस्ट काम शुरू किया और यहीं से उनकी पहचान बनी।
1971 में विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर हेनरी कार्टियर-ब्रेसॉं ने रघु राय के काम को देखकर उन्हें अंतरराष्ट्रीय एजेंसी Magnum Photos के लिए अनुशंसा की। यहीं से भारतीय फोटोग्राफी को वैश्विक पहचान मिली।
रघु राय की कैमरे की नज़र ने भारत के हर रंग को कैद किया, गांव की गलियों से लेकर संसद भवन के गलियारों तक।
1984 की भोपाल गैस त्रासदी पर उनका फोटो-सीरीज़ आज भी फोटोजर्नलिज़्म के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है। उनकी तस्वीरें केवल घटनाओं की रिपोर्ट नहीं करतीं, बल्कि दर्शक को भीतर तक झकझोर देती हैं।
रघु राय की कई किताबें हैं:
1972 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और 2002 में France Academy of Fine Arts Award से नवाजा गया।
वे आज भी सक्रिय हैं और Raghu Rai Center for Photography के माध्यम से नई पीढ़ी को प्रशिक्षित कर रहे हैं। उनकी बेटी अवनी राय भी एक प्रसिद्ध फोटोग्राफर हैं।
रघु राय की फोटोग्राफी में भारत के विरोधाभास झलकते हैं: धार्मिक आस्था और राजनीतिक तनाव, गरीबी और करुणा, सौंदर्य और संघर्ष। उनका काम दिखाता है कि फोटोग्राफी सिर्फ क्लिक नहीं, बल्कि दृष्टि और अनुभव का संगम है।
Read Also : भारत की काँच नगरी फ़िरोज़ाबाद: इतिहास, हुनर और परंपरा की कहानी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें