नागौर का मेला : क्या आप जानते हैं इसका एक रहस्य सदियों से छिपा है?

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  राजस्थान अपनी रंगीन संस्कृति, लोक परंपराओं और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसी सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है नागौर का प्रसिद्ध मेला, जिसे लोग नागौर पशु मेला या रामदेवजी का मेला भी कहते हैं। यह मेला हर साल नागौर को एक अनोखे रंग में रंग देता है, जहाँ परंपरा, व्यापार, लोक-कलाएँ और ग्रामीण जीवन की असली झलक देखने को मिलती है। मेले की ऐतिहासिक पहचान नागौर का मेला सदियों पुराना है। प्रारंभ में यह मुख्य रूप से पशु व्यापार के लिए जाना जाता था, लेकिन समय के साथ यह एक समृद्ध सांस्कृतिक आयोजन बन गया। यह मेला आज राजस्थान की मिट्टी, लोकगीतों, खान-पान और ग्रामीण जीवन की रौनक को करीब से दिखाने वाली परंपरा बन चुका है। इसका महत्व सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। एशिया का प्रमुख पशु मेला नागौर मेला एशिया के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक माना जाता है। यहाँ हर साल हजारों पशुपालक राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और अन्य राज्यों से पहुँचते हैं। विशेष रूप से नागौरी बैल, मारवाड़ी घोड़े और सजे-धजे ऊँट मेले की शान कहलाते है...

पेरिस की सड़कों पर भारत की यादें : एक पुराना सफर


( भारतीयों का पेरिस से जुड़ाव एक लंबा सफर )
पेरिस, जो कला और संस्कृति का विश्व प्रसिद्ध केंद्र है, सदियों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। भारतीयों का पेरिस से जुड़ाव भी एक लंबा और भावुक सफर रहा है, जो 20वीं सदी की शुरुआत से शुरू होकर आज तक जीवित है।

भारतीयों का पेरिस आना मुख्य रूप से शिक्षा, व्यापार और कला की वजह से हुआ। 1900 के दशक के शुरुआती वर्षों में कई भारतीय छात्र और कलाकार उच्च शिक्षा और कला की खोज में पेरिस आए। यहाँ के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों और कला संस्थानों ने भारतीय युवाओं को अपनी ओर खींचा। फ्रांस की सांस्कृतिक और

शैक्षिक विरासत ने भारतीयों को एक नया दृष्टिकोण दिया, जिससे दो देशों के बीच एक अनोखा संबंध बना।

1950 और 60 के दशक में भारत की स्वतंत्रता के बाद आर्थिक और सामाजिक कारणों से भारतीय प्रवासियों की संख्या पेरिस में बढ़ी। यहाँ बसे भारतीयों ने न केवल अपने लिए रोजगार और अवसर खोजे, बल्कि अपनी संस्कृति और परंपराओं को भी साथ लेकर आए। योग, आयुर्वेद, संगीत, नृत्य और त्योहारों जैसे होली और दिवाली ने पेरिस की गलियों को रंगीन बनाया।

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे और कभी खुशी कभी ग़म में पेरिस की यादें 

पेरिस में भारतीयों की जिंदगी और उनकी यादों को भारतीय सिनेमा ने भी खूबसूरती से पर्दे पर उतारा है। कई फिल्मों में पेरिस को केवल एक पृष्ठभूमि के रूप में नहीं, बल्कि भारतीय प्रवासियों के जीवन की एक झलक के तौर पर दिखाया गया है। प्रसिद्ध हिंदी फिल्मों जैसे ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ और ‘कभी खुशी कभी ग़म’ में पेरिस को भारतीय युवाओं के सपनों और जीवन की चुनौतियों के प्रतीक के रूप में

 दर्शाया गया है। ये फिल्में न केवल रोमांस और ड्रामे से भरपूर हैं, बल्कि विदेश में बसे भारतीयों की सांस्कृतिक जड़ों और उनकी यादों का भी सम्मान करती हैं।

पेरिस के कुछ इलाकों में भारतीय समुदाय ने अपने लिए एक खास जगह बनाई है, जहाँ भारतीय बाजार, मंदिर और सांस्कृतिक केंद्र हैं। ये स्थान भारतीयों के लिए घर से दूर घर की तरह हैं, जहाँ वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं।

हालांकि, भाषा, सामाजिक समायोजन और रोजगार की चुनौतियों का सामना भी भारतीयों को करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। समय के साथ पेरिस में भारतीय समुदाय ने न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि फ्रांसीसी समाज में भी अपनी एक खास जगह बना ली।

पेरिस में भारतीयों का यह सफर संघर्ष, समर्पण और संस्कृति का संगम है। और यह सफर आज भी जारी है, यादों के साथ, फिल्मी कहानियों के साथ, और एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए।

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टिप्पणियाँ

  1. इंडियन फिल्मों के गाने जो पेरिस में शूट हुए थे,के बारे में पड़कर बड़ी ख़ुशी हुई 😊

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