गरीबी से सफलता तक: 3 असली प्रेरक कहानियाँ

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 ज्योति कुमारी — लॉकडाउन में 1,200 किमी साइकिल से घर वापसी ज्योति कुमारी  बिहार की रहने वाली छात्रा हैं। लॉकडाउन के दौरान, जब परिवहन पूरी तरह बंद हो गया था, उसने अपने घायल पिता के साथ साइकिल पर लगभग 1,200 किलोमीटर का सफर तय किया। उनका साहस और हिम्मत पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई। इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि मुश्किल हालात में भी उम्मीद और धैर्य नहीं खोना चाहिए। दीपिका कुमारी  — गरीबी से ओलम्पिक तक दीपिका कुमारी  झारखंड के छोटे गाँव की रहने वाली थीं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी और कभी-कभी खाने-पीने की भी दिक्कत होती थी। लकड़ी के बने धनुष-बाण से उन्होंने अभ्यास शुरू किया। अपनी मेहनत और लगन के कारण उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया। उनकी कहानी यह सिखाती है कि सीमित संसाधनों में भी अगर लक्ष्य और मेहनत सही दिशा में हो तो कोई भी ऊँचाई हासिल की जा सकती है। सविताबेन  — कोयले बेचकर शुरू किया व्यवसाय सविताबेन  एक दलित परिवार से आती थीं। उन्होंने शुरुआत कोयला बेचकर की और धीरे-धीरे टाइल्स का निर्माण शुरू किया। समय और मेहनत के स...

एक कप चाय और कुछ अधूरी बातें : शहर के कोने से एक कहानी

 


बारिश की कुछ बूँदें, ठंडी हवा, और हाथ में मिट्टी की कुल्हड़ में गर्म चाय...

शहर की भागती-भागती सड़कों के बीच एक कोना ऐसा भी था जहाँ वक्त रुक सा जाता था। कोई घड़ी नहीं चलती थी वहाँ, सिर्फ धुएँ की एक सीधी लकीर और चाय की धीमी चुस्की चलती थी।

वहीं एक पुरानी-सी लकड़ी की बेंच थी, जिस पर रोज़ शाम ठीक 6 बजे एक बुज़ुर्ग आ बैठते। उनका नाम किसी को नहीं पता था, और शायद ज़रूरत भी नहीं थी। उनका आना, एक कप चाय लेना, और फिर दूर कहीं खो जान- ये सब इतना नियमित हो गया था कि जैसे वो उस जगह का हिस्सा बन गए हों।

मैं भी वहीं बैठा करता था, अक्सर अकेला, कभी-कभी अपने साथ कुछ अधूरी बातें लेकर।

वो बुज़ुर्ग और उनकी ख़ामोशी

एक दिन मैंने पूछ ही लिया -

"बाबूजी, रोज़ अकेले क्यों आते हैं?"

उन्होंने मुस्कुरा कर कहा -

"कभी कोई साथ था, अब चाय ही बची है

साथ देने के लिए।"

उस एक लाइन ने जैसे पूरा जीवन समेट लिया हो।

मैं चुप हो गया। चाय सस्ती थी, लेकिन वो जवाब अनमोल था।

चाय: एक बहाना, एक साथी, एक कहानी

भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, एक एहसास है।

चाय के बहाने कितनी दोस्तियाँ बनी हैं,

कितने इश्क़ शुरू हुए हैं,

और न जाने कितनी अधूरी बातें धुएँ में उड़ गईं।

हर कुल्हड़ की दीवारों पर कोई ना कोई कहानी चिपकी होती है।

कोई पहली मुलाक़ात,

कोई आखिरी अलविदा,

या फिर वो बातें जो कभी हो ही नहीं पाईं।

शहर की भीड़ में एक कोना जो अपना सा लगता है

4 अरब कप चाय पी जाती है हर दिन भारत मेंआज भी जब उस चाय वाले के पास जाता हूँ,

वो बुज़ुर्ग नहीं आते अब।

किसी ने कहा, उनकी तबीयत बिगड़ गई थी।

कोई बोला — वो अब नहीं रहे।

पर उनके बैठने की जगह अब भी खाली नहीं होती।

वहाँ अब मेरी आदत बैठती है,

और उनकी यादें।

अधूरी बातें कभी खत्म नहीं होतीं

चाय तो ठंडी हो गई थी,

पर कुछ बातें अब भी गर्म हैं-

शायद किसी और शाम के लिए,

या किसी और की कहानी बनने के लिए।

आपकी सबसे यादगार चाय किसके साथ थी?


टिप्पणियाँ

  1. चाय की दुकानों पर घर के आसपास के लोगों से गपशप करना शायद ही कभी भुलाया जा सके - एक पाठक

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